Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 253
________________ 246 समकित-प्रवेश, भाग-8 प्रवेश : और उपशम श्रेणी ? समकित : उपशम श्रेणी तो क्षायिक और औपशमिक दोनों ही सम्यकदृष्टि चढ़ सकते हैं। क्षायोपशमिक सम्यकदृष्टि दोनों में से कोई भी श्रेणी नहीं चढ़ सकते हैं। प्रवेश : यदि कोई सातवें गुणस्थान वाले मुनिराज क्षायोपशमिक सम्यकदृष्टि हों तो फिर वे कैसे श्रेणी चढ़ेंगे? समकित : सातिशय अप्रमत्त-संयत गुणस्थान की विशेष-आत्मलीनता' द्वारा उनका सम्यकदर्शन क्षापोशमिक से औपशमिक या फिर क्षायिक हो जाता है। क्षायिक सम्यकदर्शन प्राप्त करने के बाद वे दोनों में से कोई भी श्रेणी चढ़ सकते हैं लेकिन औपशमिक सम्यकदर्शन प्राप्त करने पर मात्र उपशम श्रेणी ही चढ़ सकते हैं। प्रवेश : यह अधःप्रवृत्त-करण की प्रक्रिया क्या होती है ? समकित : अधःप्रवृत्त करणः सातिशय अप्रमत्त गुणस्थान में प्रतिसमय जीव की अनंतगुणी' आत्मलीनता (विशुद्धि) बढ़ते रहने को अधःप्रवृत्तकरण परिणाम कहते हैं। इन परिणामों का काल भी अंतर्मुहूर्त है। एक जीव की अपेक्षा देखें तो अधःप्रवृत्त-करण स्थित जीव को हर समय अनंतगुणी विशुद्धि बढ़ती जाती है। जैसे मान लो कि अधःप्रवत्तकरण का अंतर्मुहूर्त बीस समय का है। तो किसी मुनिराज की पहले समय में जो विशुद्धि है, उससे अनंतगुणी विशुद्धि दूसरे समय में होगी। अलग-अलग जीवों की अपेक्षा देखें तो अधःप्रवृत्तकरण के अंतमुहूर्त में आगे-आगे के समय वाले जीवों के परिणाम और पीछे-पीछे के समय वाले जीवों के परिणाम (विशुद्धि), एक-जैसें भी हो सकते हैं और अलग-अलग भी हो सकते हैं। 1.special-self-immersedness 2. only 3.every-moment 4.infinite-times 5.period 6.involved 7.purity 8. different 9. similar 10. different

Loading...

Page Navigation
1 ... 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308