Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ उपशम और क्षपक श्रेणी अब तक हमने सातवें गुणस्थान तक की चर्चा की। सातवा गुणस्थान दो प्रकार का है: 1.स्वस्थान' 2.सातिशय जिस सातवें गुणस्थान से गिरकर मुनिराज छठवें गुणस्थान में आ जाते हैं और इसीप्रकार छठवें से सातवें व सातवें से छठवें गुणस्थान में झूलते रहते हैं, उस सातवें गुणस्थान को स्वस्थान अप्रमत्त-संयत गुणस्थान कहते हैं। जिस सातवें गुणस्थान से मुनिराज आठवें गुणस्थान में चढ़ने का पुरुषार्थ शुरू कर देते हैं, उस सातवे गुणस्थान को सातिशय अप्रमत्त-संयत गुणस्थान कहते हैं। यहाँ अधः प्रवृत्त-करण (विशेष आत्मलीनता) की प्रक्रिया होती है। जिसका काल अंतर्मुहूर्त है। प्रवेश : सातवें से आठवें गुणस्थान में मुनिराज कैसे पहुँचते हैं ? समकित : इस प्रक्रिया को श्रेणी-आरोहण कहते हैं। इसमें मुनिराज अपनी तीसरे स्तर की आत्मलीनता को बढ़ाकर चौथे स्तर की (पूर्ण) करने का पुरुषार्थ शुरु कर देते हैं और स्वयं (शुद्धात्मा) में और गहरे-गहरे उतरते जाते हैं। यह पुरुषार्थ सातवें गुणस्थान से ही शुरू होता है इसलिये इसको सातिशय अप्रमत्त-संयत गुणस्थान कहते हैं। श्रेणी-आरोहण की प्रक्रिया दो प्रकार की होती है: 1. उपशम श्रेणी 2. क्षपक श्रेणी उपशम श्रेणी चढ़ने वाले मुनिराज आत्मलीता बढ़ाकर (अधःप्रक्तकरण परिणाम कर) सांतवें से आठवें, आठवें से नौवें, नौवें से दसवें और दसवें से ग्यारहवें गुणस्थान गुणस्थान में पहुँच जाते हैं। वहाँ अंतर्मुहूर्त के लिये चौथे स्तर की (पूर्ण) आत्मलीनता (वीतरागता) का अनुभव करते हैं यानि कि औपशमिक (निर्दोष लेकिन अस्थाई) 1. regular 2.extra-ordinary 3.effort 4. process 5.period 6.level-ascent 7.suppressing 8.abolishing 9.experience