Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 255
________________ 248 समकित-प्रवेश, भाग-8 एक जीव की अपेक्षा, अनिवत्तिकरण स्थित जीव को भी हर समय अनंतगुणी विशुद्धि बढ़ती जाती है। जैसे मान लो कि अनिवृत्तिकरण का अंतर्मुहूर्त पाँच समय का है। तो किसी मुनिराज की पहले समय में जो विशुद्धि है, उससे अनंतगुणी विशुद्धि दूसरे समय में होगी। अलग-अलग जीवों की अपेक्षा, आगे-आगे समय वाले जीवों के परिणाम पीछे-पीछे के समय वाले जीवों के परिणाम से अलग ही होते हैं और एक ही समय वाले जीवों के परिणाम हमेंशा एक जैसे ही होते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के हर समय के परिणाम असमान (अनिवृत्ति वाले) ही हैं। जैसे मान लो कि अनिवृत्तिकरण का अंतर्मुहूर्त पाँच समय का है। जितने भी मुनिराज अनिवृत्तिकरण के तीसरे समय में होंगे उन सभी के परिणाम दूसरे समय वाले मुनिराजों से अलग (विशेष) और अधिक विशुद्धि वाले ही होंगे लेकिन तीसरे समय वाले सभी मुनिराजों के परिणाम एक-जैसे ही होंगे। प्रवेश : और दसवाँ गुणस्थान ? समकित : 10.सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थानः यहाँ तक आते-आते बढ़ती हुई आत्म लीनता (करण परिणामों) के द्वारा मुनिराज को मात्र सूक्ष्म-लोभ (साम्पराय) का ही उदय बाकी' रहता है। प्रवेश : इतनी ऊँची दशा में जाकर मुनिराज को किस चीज का लोभ रह जाता है ? समकित : शुद्ध-उपयोग के समय जिन भी कषायों (राग) का उदय होता है वह सब अबुद्धिपूर्वक ही होता है यानि वे कषायें जीव के ज्ञान (उपयोग) का विषय नहीं बनती क्योंकि जीव के ज्ञान (उपयोग) का विषय उस समय शुद्धात्मा है। चाहे चौथे और पाँचवें गुणस्थान में होने वाला शुद्ध-उपयोग हो या सातवें, आठवें, नौवें व दसवें गुणस्थान में होने वाला शुद्ध-उपयोग। 1.remaining 2. state 3.greed 4. subconsciously 5.subject

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