Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 244
________________ 237 समकित-प्रवेश, भाग-8 प्रवेश : कृपया एक-एक का स्वरूप विस्तार से समझाईये। समकित : ठीक है ! 1. मिथ्यात्व (मिथ्यादर्शन) गुणस्थानः मिथ्या का अर्थ है अयथार्थ / विपरीत। इस गणस्थान वाले जीव को न तो सच्चे देव-शास्त्र-गुरु के स्वरूप की और न ही उनके द्वारा बताये गये जीव आदि प्रयोजन भूत तत्वों की यथार्थ-श्रद्धा होती है। यानि कि यह जीव आत्मानुभव पूर्वक अजीव आदि तत्वों से भिन्न जीव तत्व (शुद्धात्मा) की प्रतीति (अपनापन) नहीं करता। पहले गुणस्थानवर्ती मिथ्यादृष्टि जीव दो प्रकार के होते हैं: 1. अनादि मिथ्यादृष्टि 2. सादि मिथ्यादृष्टि अनादि मिथ्यादृष्टि जीव वे हैं जिन्हें अनादिकाल से आज तक अपने शुद्धात्मा की आत्मानुभव पूर्वक प्रतीति यानि कि सम्यकदर्शन हुआ ही नहीं। सादि मिथ्यादृष्टि जीव वे हैं जिन्हें सम्यकदर्शन होकर छूट गया है और वे फिर से मिथ्यादृष्टि हो गये हैं। प्रवेश : एक बार सम्यकदर्शन होकर छूट जाता है ? कैसे? समकित : हाँ, अब हम यही देखने वाले हैं कैसे। इसीलिये दूसरे व तीसरे गुणस्थान से पहले हम चौथे गुणस्थान (अविरत् सम्यकदर्शन) के बारे में समझेंगे। 4. अविरत सम्यकदर्शन (सम्यक्त्व): जो जीव सच्चे देव-शास्त्र-गुरु का स्वरूप समझकर उनके बताये हुए जीव आदि प्रयोजनभूत तत्वों का यथार्थ-निर्णय कर आत्मानुभव यानि कि शुद्धात्मा को जानकर, उसमें अपनापन कर दर्शन-मोहनीय (मिथ्यात्व) का अनुदय करता है और साथ ही साथ शुद्धात्मा में पहले स्तर की लीनता कर आनंतानुबंधी कषाय का अनुदय करता है, उसे 1.opposite 2.right-belief 3.belief 4.un-rise

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