Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 238 समकित-प्रवेश, भाग-8 चौथा अविरत् सम्यकदर्शन गुणस्थान प्रगट होता है। जब अनादि मिथ्यादृष्टि जीव इस प्रकार मिथ्यात्व और आनंतानुबंधी कषाय का अनुदय कर अविरत सम्यकदर्शन प्रगट करता है तो उसके दर्शन-मोहनीय (मिथ्यात्व) के तीन टुकड़े हो जाते हैं: 1. मिथ्यात्व प्रकृति 2. मिश्र (सम्यक-मिथ्यात्व) प्रकृति 3. सम्यक्त्व प्रकृति सम्यकदर्शन प्रगट होने से अधिकतम एक अंतर्मुहूर्त तक इन तीनों टुकड़ों का उदय नहीं होता। इस दशा को प्रथमोपशम (प्रथमउपशम) सम्यक्त्व कहते हैं। यदि यह अंतर्मुहूर्त (प्रथमोपशम-सम्यक्त्व) का समय पूरा न हो पाये और उसको वापिस आनंतानुबंधी कषाय का उदय आ जाये तो वह जीव सम्यक्त्व की असादना करके दूसरे सासादन गुणस्थान में गिर जाता है। प्रवेश : यदि प्रथमोपशम-सम्यक्त्व का अंतर्मुहूर्त पूरा हो जाये तो ? समकित : अंतर्मुहूर्त पूरा होने के बाद निम्न संभावनाएँ बनती हैं: 1. यदि अंतर्मुहूर्त पूरा होने पर मिथ्यात्व प्रकृति का उदय आ जाये तो जीव पहले मिथ्यात्व गुणस्थान में गिर जाता है। 2. यदि अंतर्मुहूर्त पूरा होने पर मिश्र (सम्यक-मिथ्यात्व) प्रकृति का उदय आ जाये तो वह जीव तीसरे मिश्र (सम्यक-मिथ्यात्व) गुणस्थान में गिर जाता है। 3. और यदि अंतर्मुहूर्त पूरा होने पर सम्यक्त्व प्रकृति (मिथ्यात्व का तीसरा टुकड़ा) का उदय आ जाये, तो वह जीव रहता तो चौथे अविरत् सम्यक्त्व गुणस्थान में ही है, लेकिन प्रथमोपशम सम्यकदृष्टि से क्षायोपशमिक सम्यकदृष्टि हो जाता है। यह क्षायोपशमिक सम्यकदृष्टि होता तो सम्यकदृष्टि ही है लेकिन इसको कुछ केवली के ज्ञानगम्य चल-मल-अगाड़ दोष लगते रहते हैं। 1.parts 2.less than 48 minutes 3.arise 4.state 5.dishonour 6.flaws