Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 240 समकित-प्रवेश, भाग-8 समकित : 1. सासादन गुणस्थानः जैसा कि हमने देखा कि चौथा गुणस्थान प्रगट' होने पर प्रथमोपशम सम्यक्त्व का अंतर्मुहूर्त पूरा न हो पाये और अनंतानुबंधी कषाय का उदय आ जाये तो जीव सम्यक्त्व की असादना (विराधना) कर चौथे अविरत सम्यकदर्शन गुणस्थान से दूसरे सासादन गुणस्थान में आ जाता है यानि कि उसका सम्यक्त्व छूट जाता है। प्रवेश : दूसरे गुणस्थान में वह जीव कितने समय तक रहता है ? समकित : जितना समय प्रथमोपशम सम्यक्त्व का अंतर्मुहूर्त पूरा होने में बाकी रह गया था उतने समय तक वह जीव दूसरे सासादन गुणस्थान में रहता है। प्रवेश : उसके बाद? समकित : उसके बाद वह नियम से पहले गणस्थान में आ जाता है। जैसे कोई छिपकली छत से गिरे तो भले ही कुछ देर हवा में रहे लेकिन आना तो उसे जमीन पर ही है। प्रवेश : इस उदाहरण के हिसाब से छिपकली है-जीव, छत है-चौथा गुणस्थान, हवा है-दूसरा गुणस्थान और जमीन है- पहला गुणस्थान ? समकित : हाँ बिलकुल सही पहचाना। अब आगे सुनो ! 3. मिश्र (सम्यक-मिथ्यात्व) गुणस्थानः जैसा कि हमने देखा कि चौथा गुणस्थान प्रगट होने पर प्रथमोपशम सम्यक्त्व का अंतर्मुहूर्त पर होने के बाद यदि मिश्र (सम्यक-मिथ्यात्व) प्रकृति का उदय आ जाये तो जीव चौथे अविरत् सम्यकदर्शन गुणस्थान से गिरकर तीसरे मिश्र गुणस्थान में आ जाता है। प्रवेश : इस गुणस्थान का नाम सम्यक-मिथ्यात्व क्यों है ? समकित : क्योंकि यहाँ न सम्यक्त्व ही है और न मिथ्यात्व ही। कोई तीसरा ही केवली के ज्ञान गम्य परिणाम है। जैसे दही और गुड़ को मिला दिया जाये तो फिर वह मिश्रण न खट्टा ही होता है और न मीठा ही। कोई 1.occur 2.arise 3.remaining 4.ceiling 5.occur 6.state 7.mixture