Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 53 समकित-प्रवेश, भाग-3 अभक्ष्य कहते हैं। जैसे कि आलू, प्याज, लहसुन, गाजर, मूली, शकरकंद, अदरक आदि सभी जमीकंद बगैरह। प्रवेश : कैसे? समकित : इन सभी जमीकंद के छोटे से छोटे कण में भी अनंत' स्थावर निगोदिया जीव होते हैं। इसलिये इनको बनाने या खाने से एक साथ अनंत स्थावर जीवों का घात (हिंसा) हो जाता है। प्रवेश : अनुपसेव्य चीजों को खाने में भी जीवों का घात होता है ? समकित : जीवों का घात तो होता ही है क्योंकि जीवों के मल-मूत्र, लार, वमन आदि को अनुपसेव्य पदार्थ (चीजें) कहते हैं और इन सब में तो नियम से त्रस जीव होते ही हैं। साथ ही साथ इन सब चीजों का सेवन दुनिया मे भी निंदनीय (बुरा) माना जाता है। ऐसे लोक-निंद्य चीजों का सेवन बिना लोलुपता यानि कि लोभ कषाय की तीव्रता के नहीं हो सकता और हमने देखा ही था कि कषाय की तीव्रता का फल नरक है। प्रवेश : और शराब नशाकारक अभक्ष्य है ? समकित : सभी नशीली चीजें जैसे कि शराब, भांग, अफीम, गांजा, चरस, तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा आदि नशाकारक अभक्ष्य है। क्योंकि इनके बनने में हिंसा तो होती ही है, साथ ही साथ इनके सेवन से व्यक्ति सही-गलत का विवेक भी खो देता है। वैसे भी यह सब व्यसन की श्रेणी में आते हैं। प्रवेश : भाईश्री ! ये व्यसन क्या होते हैं ? समकित : वह मैं तुम्हें बाद में बताऊँगा। पहले अनिष्टकारक अभक्ष्य के बारे में समझलो। हमेंशा पहले जो काम कर रहे हो उसको पूरा करना चाहिये, उसके बाद ही नया काम शुरू करना चाहिये। 1.infinite 2.defaming 3.category