Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 137 धर्म द्रव्य और अधर्म द्रव्य भी लोक-प्रमाण असंख्यात प्रदेशी हैं। आकाश द्रव्य अनंत प्रदेशी है। काल द्रव्य एक प्रदेशी है। इसलिये काल द्रव्य को अस्तिकाय की श्रेणी' से बाहर रखा गया है। प्रवेश : यह अस्तिकाय क्या होता है ? समकित : एक से अधिक प्रदेश वाले (बहु प्रदेशी) द्रव्यों को अस्तिकाय कहते हैं। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य बहुप्रदेशी होने से अस्तिकाय कहलाते हैं। प्रवेश : ओह ! काल द्रव्य एक प्रदेशी है इसलिये वह अस्तिकाय नहीं कहलाता। लेकिन शुद्ध पुद्गल द्रव्य यानि कि अविभागी पुद्गल परमाणु भी तो एक प्रदेशी है ? समकित : शुद्ध अविभागी पुद्गल परमाणु तो एक प्रदेशी ही है लेकिन स्कंध रूप से बहुप्रदेशी हो जाता है इसलिये उसे उपचार (व्यवहार) से अस्तिकाय की श्रेणी में रखा गया है। इसतरह जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश यह पाँच अस्तिकाय हैं। प्रवेश : यह तो समझ में आ गया लेकिन मेरे पिछले प्रश्न का उत्तर अभी भी अनुत्तरित है। समकित : हाँ, मुझे याद है। बस अब हमको यही समझना है कि जब जीव और पुद्गल स्वयं अपनी योग्यता से ही चलते हैं तब धर्म द्रव्य पर तो मात्र उनके चलने में अनुकूल होने का आरोप बस आता है। तो यह आरोप धर्म द्रव्य पर ही क्यों आता है? किसी दूसरे द्रव्य पर क्यों नहीं? सुनोअन्य (दूसरे) द्रव्यों पर यह आरोप नहीं आ सकता क्योंकि - 1. सभी जीव, पदगल और काल द्रव्य स्वयं आकाश के सीमितप्रदेशों में रहते हैं लेकिन जीव व पुद्गल का गमन तो पूरे लोकाकाश में होता है। तो फिर अपनी सीमा के बाहर किसी भी दूसरे जीव और पुद्गल के गमन में अनुकूल होने का आरोप उन पर कैसे आये? 1.category 2.unanswered 3.limited-area 4.motion 5.boundary of existence