Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 222 समकित-प्रवेश, भाग-7 सामायिक, स्तव और वंदना को सामूहिक रूप से कृतिकर्म कहते हैं। ये तीनों संधि कालों में करने लायक कर्म हैं। प्रवेश : और प्रतिक्रमण में किसकी भक्ति करते हैं ? समकित : 4. प्रतिक्रमणः प्रतिक्रमण में किसी की भक्ति नहीं बल्कि अपने व्रतों में लगे हुए दोषों की समीक्षा कर उन दोषों का निराकरण (त्याग) करते हैं यह एक तरह का कन्फैसन है। यह प्रतिदिन दो बार (सुबह-शाम) किया जाता है। निश्चय से तो विभाव (शुभ-अशुभ भाव) से स्वभाव (शुद्ध-भाव) में वापिस लौटना ही प्रतिक्रमण है। प्रवेश : क्या प्रतिक्रमण भी अनेक प्रकार का होता है ? / समकित : हाँ, उसकी चर्चा विस्तार से अगले पाठ में करेंगे। अभी तो व्यवहार प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग के स्वरूप को समझते हैं। 5. प्रत्याख्यानः व्यवहार प्रतिक्रमण में, व्रतों में लगे दोषों की समीक्षा तो कर ली जाती है, लेकिन यह दोष भविष्य में नहीं लगने दगा इस प्रतिज्ञा का नाम व्यवहार प्रत्याख्यान यानि कि त्याग है। इसलिये प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान के बिना अधूरा है क्योंकि हर गलती के लिये हम प्रतिक्रमण करते जायें यानि कि गलती को स्वीकार करते जायें और उसके लिये क्षमायाचना करते जायें लेकिन उस गलती को सुधारे नहीं, यानि कि भविष्य में वह गलती न होने देने की प्रतिज्ञा (प्रत्याख्यान) न करें, तो इस तरह गलती को स्वीकारने और क्षमा याचना (प्रतिक्रमण) करने का कोई अर्थ नहीं रह जाता। वह मात्र औपचारिकता बन के रह जाती है। जैसे कोई बार-बार किसी गलती के लिये सॉरी बोले और बार-बार वही गलती दोहराये। सॉरी की सार्थकता सिर्फ गलती स्वीकार करके उसके लिये क्षमायचना करने में नहीं है बल्कि ऐसी गलती मैं दोबारा नहीं दोहराऊँगा ऐसा वायदा करने में है। 1.analysis 2.confession 3.future 4.formality 5.sorry 6.usefulness 7.commitment