Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 158 समकित-प्रवेश, भाग-6 4. निर्जरा तत्व : जीव की पर्याय में शुद्धि की वृद्धि और अशुद्धि की आंशिक-हानि होते जाना भाव-निर्जरा है। वहीं द्रव्य-कर्मों की आंशिक हानि होते जाना द्रव्य-निर्जरा है। 5. मोक्ष तत्वः जीव की पर्याय में शुद्धि की पूर्णता यानि कि अशुद्धि का सर्वथा-नाश होना भाव-मोक्ष है। वहीं द्रव्य-कर्मों का सर्वथा नाश होना द्रव्य-मोक्ष है। प्रवेश : भाईश्री ! आपने तो मोक्ष ही करा दिया लेकिन पाप-पुण्य तो बाकी रह गये? हमने तो सुना था कि पाप-पुण्य दोनों का नाश होने पर ही जीव मोक्ष जाता है ? समकित : हा...हा...! तुमने एकदम सही सुना है। आश्रव-बंध (अशुद्धि) का सर्वथा नाश होने से पाप-पुण्य का भी नाश हो गाया क्योंकि पाप-पुण्य तो आश्रव-बंध के ही तो भेद हैं, इसलिये तो नव-तत्व संक्षेप में साततत्व कहे जाते हैं। प्रवेश : पाप-पुण्य तत्व आश्रव-बंध तत्व के भेद किस तरह हैं ? समकित : जैसा कि हमने देखा कि भाव-आश्रव का अर्थ है-अशुद्धि की उत्पत्ति। और भाव-बंध का अर्थ है- अशुद्धि का बना रहना। अशुद्धि मतलब मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र यानि कि मोह, राग-द्वेष। इनमे से मोह, अशुभ-राग व द्वेष, पाप-भाव हैं और शुभ-राग, पुण्य-भाव है। प्रवेश : तो क्या पाप-पुण्य तत्व भी दो प्रकार के हैं, भाव पाप-पुण्य और द्रव्य पाप-पुण्य ? समकित : हाँ, बिल्कुल। 6. पाप तत्वः जीव की पर्याय में मोह, अशुभ राग और द्वेष का आना (उत्पन्न होना) व बना रहना भाव-पाप तत्व है। वहीं द्रव्य-कर्मों की पाप प्रकृतियों (ज्ञाना., दर्शना., मोहनी., अंतराय, असाता वेदनीय, अशुभ आयु, अशुभ नाम, निम्न गोत्र) का आना व जीव के साथ एक क्षेत्र में बना रहना द्रव्य-पाप तत्व है। 1.increment 2.partial-decrement 3.completely-destroyed 4.types