Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ पाँचवे गुणस्थान वाले श्रावक के दैनिक कर्म समकित : आज हम पंचम गुणस्थान वाले श्रावक के द्वारा प्रतिदिन अवश्यरूप से किये जाने वाले दैनिक कर्मों की चर्चा करेंगे। प्रवेश : वे दैनिक कर्म कौनसे हैं ? समकित : जो रोज करने लायक हों उन्हें दैनिक कर्म कहते हैं। निश्चय-से तो रोज करने लायक एक ही कर्म है और वह है-स्वयं को जानना, स्वयं में अपनापन करना व स्वयं में लीन होना। प्रवेश : यह तो तीन हो गये ? समकित : यह तीनों कार्य एक ही समय में यानि कि एक ही साथ होते हैं। तीन भेद तो मात्र समझाने के लिये किये जाते हैं। प्रवेश : इसका मतलब यह हुआ कि स्वयं को जानना, स्वयं में अपनापन करना और स्वयं में लीन होना यानि कि एक अभेद-रत्नत्रय ही निश्चय दैनिक कर्म है ? समकित : हाँ, बिल्कुल और इस निश्चय दैनिक कर्म के साथ प्रतिदिन अवश्य रूप से होने वाला छह प्रकार का शुभ राग व्यवहार से दैनिक कर्म कहने में आता है व तत्संबंधी बाह्य क्रिया व्यवहार से व्यवहार दैनिक कर्म कहने में आती है। प्रवेश : वे प्रतिदिन होने वाले छः प्रकार के व्यवहार दैनिक कर्म कौन-कौन से हैं ? समकित : 1. देवपूजा 2. गुरु-उपासना 3. स्वाध्याय 4. संयम 5. तप 6. दान 1. देवपूजाः पाँचवे गुणस्थान योग्य आत्मलीनता रूप निश्चय पूजा के साथ होनेवाला सच्चे-देव यानि कि वीतरागी और सर्वज्ञ जिनेन्द्र / 1.essentially 2.actually