Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ मुनिराज की तीन गुप्ति और पाँच-इन्द्रिय विजय (निग्रह) समकित : गप्तिः शद्धात्मा में गुप्त (लीन) हो जाना वह निश्चय गप्ति है। निश्चय गुप्ति होने पर मन-वचन-काय की सभी शुभ-अशुभ चेष्टाएं स्वयं ही रुक जाती हैं। शुद्धात्मा में से उपयोग' बाहर आने पर मन-वच-काय की अशुभ चेष्टाओं (क्रियाओं) से दूर रहना व्यवहार गुप्ति है। प्रवेश : भाईश्री ! इसीलिये व्यवहार गुप्ति तीन प्रकार की हैं ? समकित : हाँ, मनो-गुप्ति, वचन-गुप्ति, काय-गुप्ति यह तीन प्रकार की व्यवहार गुप्ति हैं। प्रवेश : कृपया समझाईये। समकित : ध्यान से सुनो! व्यवहार मनोगुप्ति- मोह, अशुभ-राग, द्वेष आदि पाप (अशुभ) भावों का परिहार (दूर रहना) व्यवहार मनो-गुप्ति है। व्यवहार वचनगुप्ति- असत्य, पर-पीड़ाकारक, निंदनीय, कलहकारक, हिंसापोषक, विकथा आदि अशुभ वचनों से दूर रहना व्यवहार वचन गुप्ति है। व्यवहार काय गुप्ति- हिंसा आदि पाप-रूप (अशुभ) शरीर की क्रियाओं से दूर रहना व्यवहार काय गुप्ति है। प्रवेश : और पाँच इन्द्रिय विजय (निग्रह) ? समकित : इन्द्रिय विजयः आत्मलीनता द्वारा स्वयं ही पाँच इन्द्रियों के विषयों की इच्छा उप्तन्न नहीं होना निश्चय इंद्रिय-विजय है। 1.attention