Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 215 समकित-प्रवेश, भाग-7 4. आदान-निक्षेपण समिति में लगने वाले दोष (अतिचार): * जो उपकरण' उठाना या रखना है उसको बिना सावधानी के, बिना प्रतिलेखन के उठाना या रखना। * जिस स्थान पर उपकरण रखना या उठाना है वहाँ बिना सावधानी के, बिना प्रतिलेखन के रखना या उठाना आदि नौ-कोटि पूर्वक लगने बाले दोष। 5. प्रतिष्ठापना समीति में लगने वाले दोष (अतिचार): * जिस स्थान पर मल-मूत्र आदि छोड़ना है, उठना-बैठना है वहाँ बिना सावधानी के, बिना प्रतिलेखन किये मल-मूत्र आदि छोड़ देना या उठना-बैठना आदि नौ-कोटि से लगने वाले दोष। प्रवेश : भाईश्री ! अतिचार और अनाचार में क्या अंतर है ? समकित : प्रमाद अथवा अज्ञान से जो दोष व्रतों में लग जाते हैं उन्हें अतिचार कहते हैं। जो दोष जान-बूझकर या फिर पाँच इंद्रियों के विषयों-की-इच्छा से किये जायें उन्हें अनाचार कहते हैं। यह व्रत के मूल स्वरूप को ही समाप्त कर देते हैं। ध्यान रहे बार-बार लगाया जाने वाला अतिचार, अनाचार बन जाता है। प्रवेश : अतिचार और अनाचार दोनों का प्रयाश्चित किया जाता है ? समकित : अतिचार के तो साधारण प्रयाश्चित हो जाते हैं लेकिन अनाचार के लिये एक ही प्रयाश्चित होता है और वह है-मूल प्रयाश्चित यानि कि दीक्षा-छेद (दीक्षा समाप्ति)। प्रवेश : कृपया मुनिराज की तीन गुप्ति और पाँच-इंद्रिय विजय (निग्रह) का स्वरूप और समझा दीजिये। समकित : हाँ, हमारा अलगा पाठ यही है। 1.equipments 2.carelessness 3.unknowingly 4.knowingly 5.materialistic-desires 6. atonement