Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 214 समकित-प्रवेश, भाग-7 * बिना सोचे-विचारे बोलना। * किसी बात की सच्चाई जाने बिना बोलना। * बीच में बोलना। * धर्म का स्वरूप समझे बिना बोलना आदि मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना पूर्वक लगेने वाले दोष'। 3. ऐषणा समिति में लगने वाले दोष (अतिचार): * अपने उद्देश्य से बनाया हुआ या छः काय के जीवों में से किसी को भी पीड़ा पहुँचाकर बनाये हुए आहार (गोचरी) को लेना, ऐसे अधःकर्म आदि सोलह उद्गम-दोष। * श्रावक की प्रशंसा करके लिया गया आहार, ऐसे धात्री आदि सोलह उत्पादन-दोष। यह भोजन मेरे लायक नहीं है ऐसी शंका हो जाने पर भी आहार ले लेना, ऐसे शक्ति आदि दस अशन्-दोष। * अचित्त में सचित्त को मिलाकर बनाया हुआ आहार लेना, ऐसे संयोजन आदि प्रागेषणा-दोष। * गरिष्ठ या अधिक भोजन लेना। इसके अलावा निकृष्ट (नीच) आचरण वाले गृहस्थ, वैश्या, व्यभिचारिणी', कंजूस, दरिद्री", व्यसनी", निर्माल्य (देव-द्रव्य) सेवन करने वाले, हिंसक व्यापार करने वाले, गृहीत मिथ्यात्वी आदि के घर का आहार लेना। एवं जहाँ अँधेरा हो, गीला हो, सचित्त पुष्प आदि बिखरे हों ,त्रस-जीव, मल-मूत्र, भूसा, पेड़-पौधे, पत्थर, गोबर आदि पड़े हों, अधिक सजावट की गयी हो, यज्ञशाला, दानशाला, शादी का घर, सुनसान" में बना घर, फार्महाउस, पेड़-पौधों और बेलों से घिरा घर, नाटकशाला, गायनशाला आदि स्थानों पर आहार लेना आदि नौ-कोटि से लगने वाले अनेक दोष हैं लेकिन अभी सभी की चर्चा कर पाना असंभव है। 1.flaws 2.purpose 3.origin-flaws 4.gain-flaws 5.doubt 6.meal-flaws 7.combination-flaws 8.prostitute 9.loose-character 10.deprived 11.addict 12.isolation 13.creepers