Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 192 समकित-प्रवेश, भाग-6 नियम-पूर्वक' सभी प्रकार के आरंभ(गृहकार्य आदि) से निवृत्त होकर, एकांत स्थान में सामायिक करता रहता है। यह उसका प्रोषध-उपवास व्रत है। प्रोषध-उपवास तीन प्रकार से किया जाता है: (अ) उत्तम' (ब) मध्यम (स) जघन्य (अ) उत्तमः पर्व के एक-दिन-पहले और एक दिन बाद कषाय, विषय का त्याग कर एकासन-पूर्वक व पर्व के दिन पूरी तरह से आहार को छोड़कर, आरंभ (गृहकार्य आदि) से निवृत्ति लेकर एकांत स्थान में सामायिक करते रहना उत्तम प्रषोध-उपवास है। (ब) मध्यमः केवल पर्व के दिन कषाय, विषय व आहार को पूरी तरह से को छोड़कर, आरंभ (गृहकार्य आदि) आदि से निवृत्ति लेकर एकांत स्थान में सामायिक करते रहना मध्यम प्रोषध-उपवास है। (स) जघन्यः पर्व के दिन कषाय, विषय के त्याग और एकासन-पूर्वक, आरंभ (गृह कार्य आदि) से निवृत्ति लेकर एकांत स्थान में सामायिक करते रहना, जघन्य प्रोषध-उपवास है। 3. भोग-उपभोग परिमाण व्रतः परिग्रह-परिमाण व्रत में जो परिग्रह सीमित किया था उस सीमित परिग्रह में भी भोग और उपभोग की सीमा कर लेना भोग-उपभोग परिमाण व्रत है। जिन चीजों का सेवन एकबार किया जा सके उन्हें भोग सामग्री कहते हैं, जैसे-भोजन आदि और जिन चीजों का सेवन बार-बार किया जा सके उन्हें उपभोग सामग्री कहते हैं, जैसे-वस्त्र आदि। 4. अतिथि-संविभाग व्रतः स्वयं के लिये बनाये गये शुद्ध, प्रासुक और मर्यादित भोजन में से विभाग(हिस्सा)करके सत्पात्रों" को विधि-पूर्वक" दान देना अतिथि-संविभाग व्रत है। सत्पात्र तीन प्रकार के होते हैं: 1.pledgedly 2.household-tasks etc 3.free 4.high-level 5.medium-level 6.low-level 7.previous-day8.next-day9.limited 10.consumption 11.deserved-one 12.systematically