Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 191 ब) पापोपदेश अनर्थदण्डः बिना मतलब ही हिंसादि पाप वाले व्यापार' और खेती आदि की सलाह दूसरों को देते रहना। स) प्रमाद-चर्या अनर्थदण्डः बिना-मतलब-ही जमीन खोदना, पानी फैलाना, आग जलाना, पंखा चलाना, पेड़-पौधे फूल-पत्ती आदि तोड़ना यानि स्थावर जीवों की हिंसा करना। द) हिंसादान अनर्थदण्डः दूसरों को हिंसक उपकरण जैसे चाकू, तलवार, बंदूक, हल आदि देना। इ) दुःश्रुति अनर्थदण्डः राग-द्वेष पैदा करने वाली विकथा, उपन्यास' या वासना पैदा करने वाली कथाओं को सुनना-देखना। दूसरी प्रतिमा वाला श्रावक ऐसे अनेक प्रकार के अनर्थदण्ड का त्यागी होता है। उसकी इस प्रतिज्ञा को अनर्थदण्ड-त्याग व्रत कहते हैं। शिक्षाव्रतः महाव्रतों की शिक्षा यानि कि महाव्रतों के अभ्यास रूप शिक्षा व्रत होते हैं। यह चार होते हैं: 1. सामायिक व्रतः समता-भाव ही सामायिक है। आत्मलीनता होने पर सभी वस्तुओं में राग-द्वेष समाप्त होने से समता-भाव प्रगट हो जाता है। आत्मलीनता के बिना राग-द्वेष के अभाव रूप सच्चा समता-भाव प्रगट नहीं हो सकता। इसलिये आत्मलीनता के बिना सच्ची सामायिक नहीं हो सकती। यह श्रावक प्रतिदिन नियमरूप से सुबह, दोपहर और शाम एकांत-स्थान में कम से कम दो घड़ी (48 मिनिट) सामायिक करता है। यही उसका सामायिक शिक्षा व्रत है। 2. प्रोषध-उपवास व्रतः उप यानि पास" और वास यानि ठहरना। कषाय, विषय और आहार के त्याग पूर्वक आत्मा के पास (समीप) ठहरना ही उपवास है। आत्मा के पास ठहरने यानि कि आत्मालीनता होने पर कषाय, पाँच इंद्रियों के विषयों को भोगने का भाव और आहार (भोजन) करने की इच्छा का न उत्पन्न होना ही सच्चा उपवास है। दूसरी प्रतिमा से श्रावक पर्व (अष्टमी, चतुर्दशी आदि) के दिनों में 1. business 2.farming 3. advise 4.purposelessly 5.equipments 6.nonsense-talks 7.nobel8.eroticism 9.stories 10.practice 11.close 12.stay