Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 193 1. उत्तम पात्र : मुनिराज 2. मध्यम पात्र : व्रती श्रावक 3. जघन्य पात्र : अविरत सम्यकदृष्टि प्रवेश : भाईश्री ! कुपात्र...? समकित : मिथ्यादृष्टि जीव कुपात्र है। कुपात्र को दान देने का फल कुभोग भूमि है। जो पात्र नहीं ऐसे जीव अपात्र हैं, उनको धर्म बुद्धि से दान देने का फल नरक है। ध्यान रहे ! अविरत सम्यकदृष्टि और दशवी प्रतिमा तक के व्रती श्रावक के उद्देश्य से भोजन बनाया जा सकता है लेकिन ग्यारहवीं प्रतिमाधारी श्रावक, आर्यिका और मुनिराज के उद्देश्य से भोजन नहीं बनाया जा सकता क्योंकि उनका उद्दिष्ट भोजन का त्याग है / इसप्रकार निश्चय व्रत-प्रतिमा (भूमिका योग्य आत्मलीनता) के साथ बारह प्रकार के बाह्य व्रत पालने का सहज शुभ-राग व्यवहार प्रतिमा कहलाता है और तत्संबंधी बाह्य क्रिया व्यवहार से व्यवहार प्रतिमा कहलाती है, क्योंकि जीव के भावों और बाह्य क्रिया के बीच निमित्तनैमित्तिक संबंध होता है। निश्चय व्रत के साथ जो बाह्य व्रतादि पालने का शुभ राग व बाह्य क्रिया है वही सच्चे व्यवहार व्रत हैं क्योंकि निश्चय के बिना सच्चा व्यवहार नहीं होता। प्रवेश : बारह व्रतों का स्वरूप तो अच्छी तरह से समझ में आ गया अब पंचम गुणस्थान वाले श्रावक के दैनिक' षट्कर्म के बारे में और समझा दीजिये। समकित : आज नहीं कल। 1.day-to-day 2.six-practices