Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 196 समकित-प्रवेश, भाग-7 5. धर्मोपदेश- प्रवचन, वचनिका, धार्मिक-कक्षा आदि लेना। प्रवेश : और संयम ? समकित : 4. संयमः स्वयं में संयमित (लीन) होने रूप निश्चय संयम के साथ यथायोग्य इन्द्रिय-संयम' और प्राणी-संयम को पालने का शुभ राग व क्रिया व्यवहार संयम कहलाता है। छः काय (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस काय) के जीवों की हिंसा के त्याग का शुभ राग व क्रिया छः प्रकार का प्राणी संयम है। पाँच इंन्द्रिय और मन के विषयों का त्याग करने का शुभ राग व क्रिया छः प्रकार का इंद्रिय संयम है। दोनों मिलाकर संयम कल बारह प्रकार का हो जाता है। पाँचवे गुणस्थावर्ती श्रावक इन बारह प्रकार के संयम को आंशिक रूप से पालते हैं, जबकि मुनिराज इसको संपूर्ण रूप से पालते हैं। 5. तपः इसी प्रकार आत्म-स्वभाव में प्रतपन यानि की लीनता बढाने के उग्र पुरुषार्थ रूप निश्चय तप के साथ बारह प्रकार की शरीर-आश्रित तपस्या करने का शुभ राग व क्रिया व्यवहार तप है। प्रवेश : बारह प्रकार के व्यवहार-तप कौन-कौन से हैं ? समकित : 1. अनशन 2. अवमौदर्य 3. वृत्ति-परिसंख्यान 4. रस-परित्याग 5. काय-क्लेश 6. विविक्त-शय्यासन 7. प्रयाश्चित 8. विनय 9. वैयावृत्य 10. स्वाध्याय 11. व्युत्सर्ग 12. ध्यान इनमें शुरु के छः तप बहिरंग-व्यवहार तप है और बाद के छः तप अंतरंग-व्यवहार तप हैं। प्रवेश : ऐसा क्यों? समकित : शुरु के छः अनशन आदि तपों का स्वरूप कुछ ऐसा है कि इनको करने वाला व्यक्ति बाहर से देखने वालों को तपस्वी लगता है इसलिये इन्हें बहिरंग तप कहा है। 1.sensual-control 2.violence-control 3.total 4.physical 5. ascetic 6.external