Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 217
________________ 210 समकित-प्रवेश, भाग-7 4. ब्रह्मचर्य महाव्रतः निश्चय से तो ब्रह्म (आत्मा) में चर्या (तीसरे स्तर की आत्मलीनता) करना ही ब्रह्मचर्य महाव्रत है। नौ-कोटि से अब्रह्म (काम सेवन) का सर्वथा त्याग व्यवहार ब्रह्मचर्य महाव्रत है। मुनिराज नौ-कोटि और नौ-बाड़ो सहित अठारह हजार प्रकार के अखंड ब्रह्मचर्य (शील) का पालन करते हैं। मुनिराज ब्रह्मचर्य का पालन इतनी सूक्ष्मता से करते हैं कि दीक्षा आदि विशेष-प्रसंगों को छोड़कर स्त्री से सात हाथ दूर रहते हैं। प्रवेश : यह नौ-बाड़े क्या होती हैं ? समकित : जैसे किसान अपने खेत को सुरक्षित करने के लिये बाड़ लगाता है उसीप्रकार मुनिराज और ब्रह्मचारी लोग अपने ब्रह्मचर्य को सुरक्षित रखने के लिए नौ-बाड़ों का पालन करते है जो कि निम्न हैं: 1. स्त्रियों के बीच में न रहना 2. उनको राग भरी दृष्टि से न देखना 3. छुपकर बात या पत्राचार आदि न करना 4. पहले भोगें हुए भोगों को याद नहीं करना 5. काम-वासना बढ़ाने वाला गरिष्ठ-भोजन नहीं करना 6. श्रृंगार" नहीं करना 7. स्त्रियों के आसन, पलंग आदि पर न बैठना, न सोना 8. वासना बढ़ाने वाली कहानियाँ, नाटक, गीत आदि न सुनना, न देखना 9. भूख से अधिक भोजन नहीं करना प्रवेश : और अपरिग्रह महाव्रत ? समकित : 5. अपरिग्रह महाव्रतः निश्चय से तो मिथ्यात्व और कषाय रूप ___ अंतरंग परिग्रह का त्याग ही अपरिग्रह महाव्रत है। नौ-कोटि से बाह्य परिग्रह का सर्वथा त्याग व्यवहार अपरिग्रह महाव्रत 1.special occassions 2.females 3.protect 4.fencing 5.females 6.sight 7.communicate 8.physical-pleasures 9.eroticism 10.heavy-diet 11.make-over 12.over-eating

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