Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-7 199 2. औषधि दान- तीन प्रकार के सत्पात्रों को शुद्ध, प्रासुक और मर्यादित औषधि' देना औषदि दान है। 3. अभय दान- अपने व्यवहार द्वारा सभी जीवों को भय-रहित करना अथवा प्राण दान देना अभय दान है। 4. ज्ञान दान- पात्र जीव को देखकर वीतरागी तत्व-ज्ञान प्रदान करना ज्ञान दान है। यह थे पाँचवे गणस्थान वाले श्रावक के दैनिक कर्म। ध्यान रहे निश्चय दैनिक कर्म के बिना यह छः प्रकार का शुभ-राग व क्रिया पूण्य बंध का कारण तो है लेकिन व्यवहार से भी सच्चे दैनिक कर्म या धर्म नाम नहीं पाता। इसलिये हमें निश्चय दैनिक कर्म को करने का प्रयास अवश्य करना चाहिये। तभी हमारे पूजा आदि कर्म सच्चे व्यवहार दैनिक कर्म कहलायेंगे। प्रवेश : यह सब तो बहुत अच्छे से समझ में आ गया। कृपया पूजा का स्वरूप और विस्तार से समझाईये क्योंकि पूजा तो हम रोज ही करते हैं, तो क्यों न उसका सही स्वरूप समझकर करें। समकित : हमारा अगला विषय यही है। निश्चय पूजा (आत्मालीनता) व्यवहार पूजा (जिनेन्द्र गुण स्तवन) भाव-पूजा (द्रव्य रहित) द्रव्य-पूजा (द्रव्य सहित) 1.medicine 2.fearless/relaxed 3.preachings 4. effort