Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 185 समकित : हाँ, दर्शन-प्रतिमा पहली प्रतिमा है और दूसरी प्रतिमा है- व्रत प्रतिमा। प्रवेश : व्रत-प्रतिमा के बारे में बताईये न। समकित : मानलो पहली दर्शन-प्रतिमा वाले श्रावक की आत्मलीनता (वीतरागता) 50 डिग्री है जब उसकी आत्मलीनता बढ़कर मानलो 50.1 डिग्री होने वाली हो तब उसको बारह प्रकार के व्रतों की प्रतिज्ञा लेने का शुभ-राग आये बिना नहीं रहता और वह प्रतिज्ञा ले लेता है और अपने तीव्र पुरुषार्थ के बल से 50.1 डिग्री आत्मलीनता भी प्राप्त कर लेता है और साथ में प्रतिज्ञा भी पलती रहती है। पंचम गुणस्थान वाले श्रावक की 50.1 डिग्री आत्मलीनता (वीतरागता) निश्चय व्रत प्रतिमा है और बारह प्रकार के व्रत पालने का शुभ-राग व्यवहार दर्शन प्रतिमा है व तत्संबंधी बाह्य-क्रिया व्यवहार से व्यवहार दर्शन प्रतिमा है। इसी प्रकार आगे के प्रतिमाओं के बारे में भी समझना। बस यह बात ध्यान रखने जैसी है कि आगे के प्रतिमा में पहले की प्रतिमा की प्रतिज्ञायें भी शामिल रहती हैं। प्रवेश : बारह-व्रत कौन-कौन से हैं ? समकित : पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत मिलाकर बारह व्रत हो जाते हैं। जिनकी चर्चा हम आगे के पाठों में करेंगे। प्रतिमा | निश्चय स्वरूप व्यवहार स्वरूप पहली 50deg आत्मलीनता | अष्टमूल गुण आदि की प्रतिज्ञा दूसरी / 50.1deg आत्मलीनता | बारह व्रत की प्रतिज्ञा ज्ञान-वैराग्यरूपी पानी अंतर में सींचने से अमृत मिलेगा, तेरे सुख का फव्वारा छूटेगा राग सींचने से दुःख मिलेगा। इसलिये ज्ञान-वैराग्यरूपी जलका सिंचन करके मुक्ति सुख रूपी अमृत प्राप्त कर। -बहिनश्री के वचनामृत