Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 187 पाँच अणुव्रतः 1. अहिंसाणुव्रत 2.सत्याणुव्रत 3.अचौर्याणुव्रत 4.ब्रह्मचर्याणुव्रत 5. परिग्रह-परिमाण व्रत तीन गुणव्रतः 1. दिग्व्रत 2. देशव्रत 3. अनर्थदंड-त्यागवत चार शिक्षाव्रतः 1. सामायिक व्रत 2. प्रोषध-उपवास व्रत 3.भोग-उपभोग परिमाण व्रत 4. अतिथि-संविभाग व्रत प्रवेश : कृपया समझाईये ? समकित : अणुव्रतः दूसरी प्रतिमा वाले श्रावक की भूमिका योग्य आत्मलीनता होने से उतनी तो वीतरागता है और शेष अनात्मलीनता संबंधी राग बाकी' है। इस बाकी रह गये राग में शुभ और अशुभ राग दोनों का अंश बराबर है इसलिये व्यवहार हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह रूप पाँच पापों का पूरी तरह से त्याग करने में काबिल न होने के कारण अणुरूप-से इनका त्याग करता है। इसी को अणुव्रत कहते हैं। मुनिराज संपूर्णरूप-से इन पाँच पापों का त्याग करते हैं, इसलिये उनके महाव्रत होते हैं। 1. अहिंसाणुव्रतः व्यवहार हिंसा चार प्रकार की होती है: (अ) संकल्पी हिंसाः संकल्प-पूर्वक की गयी हिंसा (जीव-घात) संकल्पी हिंसा है। ऐसी हिंसा बिना क्रूर परिणामों के नहीं हो सकती जैसे-चूहे मारने की दवाई रखना, कॉकरोच स्प्रे छिड़कना आदि। उद्योगी हिंसाः व्यापार आदि कार्यों में बहुत सावधानी वर्तने के बाद भी जो हिंसा हो जाती है उसे उद्योगी हिंसा कहते है। ध्यान रहे हिंसक चीजों का व्यापार उद्योगी नहीं, संकल्पी हिंसा में शामिल है। 1. remaining 2.fraction 3.equal 4.partially 5.completely 6.intentionally 7.precausions