Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 174 समकित-प्रवेश, भाग-6 प्रवेश : ओह ! समकित : जिसप्रकार मिश्री तो औषधि है लेकिन यदि कोई गधा मिश्री खाने का तरीका न जानकर मिश्री की बड़ी डली गले में फसाकर मर जाये तो उसमें दोष गधे का है, मिश्री का नहीं। उसीप्रकार यह उपदेश तो संसार-रोग को नाश करने वाली औषधि है, लेकिन कोई मूर्ख इसको सुनकर अर्थ का अनर्थ कर, स्वच्छंदी हो होकर अपना बुरा करे तो इसमें उपदेश का नहीं, उसका स्वयं का ही दोष है। प्रवेश : लेकिन यदि हम मिश्री बाँटते ही नहीं तो गधा मरने से बच जाता ? समकित : यदि हम मिश्री नहीं बाँटते तो गधा मरने से बच जाता, इस बात की कोई गारंटी हो या न हो, लेकिन ऐसा करने से वे रोगी जरूर मर जाते, जिनका रोग मिश्री खाने से ठीक हो गया। उसी प्रकार यदि हम यह उपदेश नहीं देंगे, तो जिसको छल ही ग्रहण करना है वह स्वच्छंद होने से बच जाता इस बात की कोई गारंटी हो या न हो, लेकिन इस बात की पूरी गारंटी है कि ऐसा करने से वे जीव जरूर मोक्षमार्ग से वंचित हो जायेंगे जिनका उद्देश्य छल ग्रहण करना नहीं, बल्कि आत्म-कल्याण करना है, मोक्ष की प्राप्ति है। प्रवेश : हाँ, सही है। कोई जीवन-रक्षक दवाई कुछ व्यक्तियों को नुकसान कर जाये, इस कारण से उसे बैन नहीं किया जा सकता। समकित : हाँ। प्रवेश : और निर्जरा एवं मोक्ष तत्व संबंधी भूल ? समकित : निर्जरा तत्व संबंधी भूलः शास्त्र में तप को निर्जरा का कारण कहा है। सो यह जीव कायक्लेश आदि शरीर-आश्रित बाह्य-तप को तो तप जानता है, मानता है लेकिन आत्मलीनता की वृद्धि (शुद्धि की वृद्धि) रूप निश्चय-तप ही वास्तविक तप है, ऐसा न जानता है, न मानता 1.medicine 2.guarantee 3.deprived 4.aim 5.life saving 6.side effect