Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
View full book text
________________ संवर, निर्जरा व मोक्ष तत्व संबंधी भूल समकित : आज हम संवर, निर्जरा व मोक्ष तत्व संबंधी भूलों की चर्चा करेंगे। संवर तत्व संबंधी भूलः आश्रव का विरोधी' संवर है। इसलिये यदि अशुद्धि यानि कि मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र की उत्पत्ति आश्रव है, तो उसकी विरोधी शुद्धि यानि कि सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र की उत्पत्ति ही संवर है। प्रवेश : शास्त्र में तो गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परिषह-जय आदि को संवर का कारण कहा है ? | समकित : हाँ, तो ठीक ही तो कहा है। यह सब सम्यकचारित्र के ही तो भेद हैं और सम्यकचारित्र, सम्यकदर्शन-ज्ञान पूर्वक ही तो होता है। प्रवेश : भाईश्री ! पाप-चितवन न करना मनोगुप्ति, मौन धारण करना वचन -गुप्ति, गमन आदि न करना काय-गुप्ति है, देखकर चलना-फिरना, खाना-पीना, उठाना-रखना आदि समिति हैं, सबके प्रति क्षमाभाव, सरलता आदि रखना धर्म (दस-लक्षण धर्म) हैं, संसार-शरीर-भोगों की क्षण-भंगुरता आदि का विचार करना अनुप्रेक्षा (बारह भावना) है और कष्टों को मंद कषायपूर्वक चुपचाप सहन करना परिषह-जय है। यह तो सभी जानते व मानते हैं, तो हमारी संवर तत्व संबंधी क्या भूल रह जाती है ? समकित : जैसा कि हमने पहले देखा था कि आत्मलीनता द्वारा प्रगट हुआ वीतराग-भाव वह निश्चय (यथार्थ) सम्यकचारित्र है और उस वीतराग-भाव रूप निश्चय चारित्र के साथ आवश्यक-रूपसे पाया जाने वाला शुभ-राग व्यवहार से सम्यकचारित्र कहने में आता है। इसलिये यह व्यवहार-चारित्र, निश्चय-चारित्र का निमित्त-कारण (सहचर ) कहलाता है। 1.opposite 2.wicked-thinking 3.silence 4.physical-activities 5.forgiveness 6.compulsorily 7.parallel-companion