Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 178 समकित-प्रवेश, भाग-6 समकित : चूँकि चारों अनुयोगों का सार तो वीतरागता ही है लेकिन शैली व विषय-वस्तु अलग-अलग है। इसलिये चारों अनुयोगों की विषय-वस्तु का सम्यकज्ञान करते हुए भी प्रेरणा' तो हमको सारभूत वीतरागता की ही लेनी चाहिये यानि कि चारों अनुयोगों के विषय जानने लायक हैं, लेकिन प्रगट करने लायक तो एक वीतरागता ही है। प्रवेश : जैसे? समकित : जैसे चरणानुयोग का विषय वीतराग मार्ग पर चलने वालों का बाह्य आचरण पालने का शुभ-राग है, वह जानने लायक है की किसप्रकार का भूमिका योग्य शुभराग व क्रिया वीतराग मार्गियों को होती ही है। लेकिन वीतरागता तो प्रगट करने लायक है यानि कि चरणानुयोग में भी राग कराने का प्रयोजन नहीं है। प्रयोजन तो वहाँ भी वीतरागता का ही है। प्रवेश : यह तो ठीक है, लेकिन चरणानुयोग में सभी जगह शुभ-राग और व्रत आदि बाह्य आचरण का उपदेश ही तो दिया गया है कि यह करना चाहिये, यह करना चाहिए, अणुव्रत ऐसे पालने चाहिये, महव्रत ऐसे पालने चाहिये? समकित : चरणानुयोग उपदेश की शैली में लिखा गया है ताकि मंद बुद्धि जीवों का भी उपकार हो जाये यानि कि जो लोग द्रव्यानुयोग की शुद्धात्मा की बात नहीं समझ सकते, स्वयं को जानकर, मानकर व लीन होकर वीतरागता नहीं प्रगट कर सकते, लेकिन अज्ञान-दशा में ही मात्र बाह्य व्रत आदि धारण करके उनमें दोष लगाकर प्रतिज्ञा-भंग' जैसे महापाप का बंध कर रहे हैं, तो कम-से-कम चरणानुयोग के उपदेश के अनुसार अपने बाह्य व्रत आदि (आचरण) को सुधारकर प्रतिज्ञा भंग के महा-पाप से तो बच जायेंगे, हालांकि इससे कुछ विशेष कार्य (मोक्ष) की सिद्धि नहीं होती। 1. inspiration 2.adoptable 3.unenlightened-state 4.pledge-dissolution 5.atleast