Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
View full book text
________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 179 प्रवेश : तो क्या द्रव्यानुयोग अनुसार शुद्धात्मा को जानने, मानने व उसमें लीन होकर वीतरागता प्रगट करने वाले जीवों को चरणानुयोग अनुसार बाह्य आचरण नहीं पालने पड़ते ? समकित : उनको जबरन नहीं पालने पड़ते, बल्कि उनके तो सहज-रूपसे निर्दोष-पने पल जाते हैं। क्योंकि उनको भूमिका योग्य व्रतादि बाह्य आचरण पालने का शुभ राग व तत्संबंधी बाहय क्रिया सहज-रूपसे हुये बिना नहीं रहती। प्रवेश : सहज मतलब ? समकित : बिना-उपादेयबुद्धि-के, बिना-हठ-के और बिना-खींचतान-कें। प्रवेश : भूमिका-प्रमाण मतलब ? समकित : अव्रत सम्यकिदृष्टि, व्रती श्रावक और मुनिराज सबकी भूमिका में अलग-अलग प्रकार का शुभ-राग होता है। जैसे-चौथे गुणस्थानवर्ती अव्रती सम्यकदृष्टि को आठ अंग आदि पालने का शुभ राग होता है। हालांकि उसकी प्रतिज्ञायें नहीं होती। पाँचवे गुणस्थानवर्ती व्रती श्रावक को ग्यारह-प्रतिमायें (प्रतिज्ञायें), अणुव्रत और दैनिक षट्कर्म आदि पालने का शुभ-राग सहज होता है व व्यवहार से मोक्षमार्ग भी कहने में आता है। प्रवेश : क्या मिथ्यादृष्टि यानि कि जिसको वीतरागता का अंश भी नहीं प्रगटा उसको इसप्रकार के शुभ-राग नहीं हो सकते हैं ? समकित : हो तो सकते हैं, लेकिन व्यवहार से भी मोक्षमार्ग कहने में नहीं आते। प्रवेश : चरणानुयोग की चर्चा तो विस्तार से हो गयी। प्रथमानुयोग, द्रव्यानुयोग और करणानुयोग के बारे में भी विसातर से समझाईये न? समकित : ठीक है सुनो। 1.automatically 2.flawlessly 3.without assuming them adoptable 4.without-stubborness 5.unforcibly