Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 162 समकित-प्रवेश, भाग-6 प्रवेश : यदि ऐसा न माने तो? समकित : यदि ऐसा न माने तो उसका पाप-पुण्य तत्व का निर्णय यथार्थ (सही) नहीं होगा। पाप-पुण्य तत्व का निर्णय अयथार्थ (गलत) होने से, आश्रव-बंध तत्व का निर्णय अयथार्थ होगा। आश्रव-बंध तत्व का निर्णय अयथार्थ होने से, आश्रव-बंध तत्व के विरोधी संवर, निर्जरा व मोक्ष तत्व का निर्णय भी अयथार्थ होगा। संवर, निर्जरा व मोक्ष तत्व का निर्णय अयथार्थ होने से, जिसके आश्रय से संवर, निर्जरा व मोक्ष तत्व प्रगट होते हैं, ऐसे जीव-तत्व का और जीव-तत्व से जुदा' अजीव-तत्व का निर्णय भी अयथार्थ ही होगा। प्रवेश : ओह ! समकित : इस तरह हमने देखा कि जिसकी एक तत्व संबंधी भूल होती है उसकी नियम से सभी तत्वों संबंधी भूल होती ही है। प्रवेश : भाईश्री ! प्रयोजनभूत तत्वों के निर्णय संबंधी इस जीव की (हमारी) और क्या-क्या भूल रह जाती हैं विस्तार से समझाईये। समकित : आज बहुत देर हो गयी है। कल बताता हूँ। स्त्री, पत्र, पैसे आदि में रचे-पचे रहना वह तो विषैला स्वाद है, सर्पकी बड़ी बाँबी है परन्तु शुभ भाव में आना वह भी संसार है। परम पुरुषार्थी महा-ज्ञानी अन्तर में ऐसे विलीन हुए कि फिर बाहर नहीं आये। -गुरुदेवश्री के वचनामृत अनंत काल से जीव को अशुभ भाव की आदत पड़ गई है, इसलिये उसे अशुभ भाव सहज है। और शुभ को बारम्बार करने से शुभ भाव भी सहज हो जाता है। परन्तु अपना स्वभाव जो कि सचमुच सहज है उसका ख्याल जीव को नहीं आता, खबर नहीं पड़ती। उपयोग को सूक्ष्म करके सहज स्वभाव पकड़ना चाहिये। __-बहिनश्री के वचनामृत 1.different 2.misconceptions