Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 159 7. पुण्य तत्वः जीव की पर्याय में शुभ राग का आना (उत्पन्न होना) व बना रहना भाव-पुण्य तत्व है। वहीं द्रव्य-कर्मों की पुण्य प्रकृतियों (साता वेदनीय, शुभ आयु, शुभ नाम, उच्च गोत्र) का आना व जीव के साथ एक क्षेत्र में बना रहना द्रव्य-पुण्य तत्व है। प्रवेश : अरे वाह ! यह तो बहुत सरल है। समकित : हाँ, इस प्रकार हम देखते हैं कि भाव आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा. मोक्ष, पाप व पूण्य तत्व, जीव के कार्य (पर्याय) हैं यानि कि जीव इनका कर्ता है। द्रव्य आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पाप व पुण्य तत्व, पुद्गल के कार्य (पर्याय) हैं यानि कि पुद्गल (अजीव) इनका कर्ता है। प्रवेश : भाव-आश्रव आदि और द्रव्य-आश्रव आदि के बीच क्या संबंध है ? समकित : भाव-आश्रव आदि जीव की पर्याय और द्रव्य-आश्रव आदि पुद्गल की पर्याय होने से, इनमें आपस में मात्र निमित्त-नैमित्तिक संबंध है, कर्ता -कर्म संबंध नहीं। क्योंकि दो द्रव्यों के बीच सिर्फ निमित्त-नैमित्तिक संबंध ही हो सकता है, कर्ता-कर्म संबंध नहीं। एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के कार्य का कर्ता नहीं हो सकता, यह हम पहले वस्तुत्व-गुण के पाठ में ही देख चुके हैं। प्रवेश : प्रयोजनभूत तत्व तो समझ में आ गये लेकिन प्रयोजनभूत तत्वों के यथार्थ-निर्णय का क्या अर्थ है, विस्तार से समझाईये। समकित : प्रयोजनभूत-तत्वों में जो तत्व जैसे हैं, उन्हें वैसा जानना व मानना प्रयोजनभूत-तत्वों का यथार्थ निर्णय है। यानि कि ज्ञेय तत्वों को ज्ञेय रूप, हेय तत्वों को हेय रूप और उपादेय तत्वों को उपादेय रूप जानना व मानना ही इन तत्वों का यथार्थ निर्णय है। जो कि सम्यकदर्शन यानि कि सच्चे सुख की प्राप्ति के उपाय में प्रमुख कारण है। तत्वार्थ सूत्र में भी कहा है- तत्वार्थ श्रद्धानं सम्यकदर्शन। प्रवेश : भाईश्री ! यह ज्ञेय, हेय व उपादेय क्या होता है ? समकित : बस यही हमारा अगला विषय है।