Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 157 प्रवेश : और अजीव-तत्व ? समकित : अजीव तत्वः मुझसे जुदा पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश व काल द्रव्य अजीव-तत्व हैं। प्रवेश : जीव-तत्व और अजीव-तत्व यह दो तो द्रव्य रूप तत्व हो गये। अब पर्यायरूप तत्वों के बारे में बताईये न ? समकित : जैसा कि हमने चार्ट में देखा कि आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पाप व पुण्य तत्व पर्याय रूप तत्व हैं और यह सभी जीव और अजीव (पुद्गल) की पर्यायें हैं। प्रवेश : भाईश्री ! थोड़ा विस्तार से बताईये न ? समकित : ठीक है ! एक-एक करके बताता हूँ। 1. आश्रव तत्वः जीव की पर्याय में मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र (मोह, राग-द्वेष) रूप अशुद्धि का आना (उत्पन्न होना) भाव-आश्रव है। वहीं द्रव्य-कर्मों (पुद्गल की पर्याय) का आना द्रव्य-आश्रव है। यह आश्रव ही बंध के कारण हैं। 2. बंध तत्वः जीव की पर्याय में अशुद्धि का बना रहना भाव-बंध है। वहीं द्रव्य-कर्मों का जीव के साथ एक-क्षेत्र में बना रहना द्रव्य-बंध है। 3. संवर तत्वः जीव की पर्याय में सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप शुद्धि की उत्पत्ति यानि कि मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप अशुद्धि आना रुक जाना (उत्पन्न न होना) भाव-संवर है / वहीं द्रव्य कर्मों का आना रुक जाना द्रव्य-संवर है। प्रवेश : इसका मतलब है कि चौथे गुणस्थान में सम्यकदर्शन प्रगट होने से संवर प्रगट हो जाता है ? समकित : हाँ, बिल्कुल ! 1.detail 2.impurity 3.common-Space 4.purity 5.occurance 6.occur