Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 155 समकित : हाँ ! जो मैं हूँ, उसको मैं रूप जानना व मानना और जो मैं नहीं हूँ, उसको यह मैं नहीं ऐसा जानना व मानना यानि जीव-तत्व (आत्मा) मैं हूँ और अजीव आदि मैं नहीं ऐसा जानना व मानना। इसी बात को अस्ति-से कहें तो जीव तत्व का यथार्थ निर्णय व नास्ति-से कहें तो अजीव आदि तत्वों का यथार्थ-निर्णय एवं अस्तिनास्ति से कहें तो नव-तत्वों का यथार्थ-निर्णय कहने में आता है। प्रवेश : भाईश्री ! प्रयोजनभूत तत्व शब्द का क्या मतलब है ? समकित : तद्-भाव सो तत्व। यानि कि जिस पदार्थ का जो भाव (स्वरूप) है, वही उसका तत्व है यानि कि पदार्थ का स्वरूप ही तत्व है। वैसे तो दुनिया में अनंत तत्व हैं यानि कि अनंत पदार्थ अपने-अपने स्वरूप (स्वभाव) सहित मौजूद हैं लेकिन जब अध्यात्मिक क्षेत्र में तत्वों की चर्चा की जाती है तो यहाँ तत्व का अर्थ होता है-प्रयोजनभूत तत्व। यानि कि ऐसे तत्व जिनके यथार्थ-निर्णय बिना हमारे प्रयोजन की सिद्धि नहीं हो सकती। प्रवेश : भाईश्री कौनसा प्रयोजन ? समकित : वही जो संसार के सभी जीवों का एक मात्र प्रयोजन है- सुख की प्राप्ति और दुःखों से मुक्ति। प्रवेश : इसका मतलब यह हुआ कि यदि हमको सुख चाहिए, तो प्रयोजनभूत तत्वों का यथार्थ-निर्णय करना होगा? समकित : हाँ बिल्कुल ! क्योंकि पूर्ण सुख की प्राप्ति मोक्ष के बिना असंभव है और मोक्ष महल की पहली-सीढ़ी सम्यकदर्शन है और सम्यकदर्शन प्रयोजनभूत तत्वों के यथार्थ-निर्णय बिना असंभव है। प्रवेश : क्या यह जीव, अजीव आदि ही प्रयोजनभूत तत्व हैं ? समकित : हाँ, तत्वार्थ-सूत्र आदि ग्रंथों में सात प्रयोजनभूत तत्व बतलाये हैं: 1.positively 2.negatively 3.spiritual 4.purpose 5.accomplishment 6.first-step