Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 10 प्रयोजनभूत तत्व (पदार्थ) समकित : अब तक हमने देखा कि स्वयं में अपनापन यानि कि आत्मश्रद्धान' ही असली सम्यकदर्शन है जो कि आत्मा के स्वरूप के यथार्थ निर्णय बिना प्राप्त होना असंभव है। लेकिन यहाँ एक प्रश्न हमारे सामने खड़ा होता है कि यदि सिर्फ आत्मा का श्रद्धान ही सम्यक दर्शन है तो फिर सम्यकदर्शन के लिये प्रयोजनभूत तत्वों के यथार्थ-निर्णय करने की बात शास्त्रों में क्यों आती है ? सिर्फ जीव-तत्व (आत्मा) के यथार्थ निर्णय का ही उपदेश क्यों नहीं दिया गया ? इस सवाल का जवाब यह है कि प्रयोजनभूत तत्वों का यथार्थ निर्णय कहो या जीव तत्व (आत्मा) का यथार्थ निर्णय कहो एक ही बात है। प्रवेश : लेकिन यह दोनों तो अलग-अलग बातें हैं ? समकित : हमको ये दोनों बातें अलग-अलग लगती हैं क्योंकि हम प्रयोजनभूत तत्वों के निर्णय का मतलब सही तरह से नहीं समझ पाते। प्रयोजनभूत तत्वों के यथार्थ निर्णय का मतलब यही निर्णय करना है कि मैं जीव-तत्व (आत्मा) हूँ और अजीव, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पाप व पुण्य तत्व मैं नहीं हूँ। प्रवेश : ओह ! समकित : हाँ, क्योंकि यथार्थ शब्द का अर्थ होता है- जैसा है वैसा। और यथार्थ निर्णय का अर्थ होता है-जो जैसा है उसे वैसा ही जानना और मानना। प्रवेश : अच्छा ! तो प्रयोजनभूत तत्वों के यथार्थ-निर्णय का अर्थ हो जायेगा कि प्रयोजनभूत तत्वों में जो तत्व जैसा है, उसको वैसा ही जानना और मानना। 1.self belief 2.impossible 3.correct-understanding