Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 151 ऐसे मोह, राग-द्वेष से मलिन (मैले) आत्मा को पाकर उदास व दुःखी होने पर उससे चौथे प्रकार के व्यवहार नय ने कहा कि ज्ञानदर्शन-चारित्र-सूख आदि अनंत शुद्ध व शाश्वत गुणों वाला आत्मा है इसप्रकार उसको अनंत गुणों के भेदों के द्वारा अभेद-अखंड आत्मा का स्वरूप समझाकर, शुद्ध आत्मा की महिमा बतलाकर, शुद्धात्मा को ज्ञेय, श्रद्धेय और ध्येय बनाने की अतिशय रुचि उत्पन्न तो करा दी। लेकिन ऐसे गुणभेद सहित आत्मा का ज्ञान, श्रद्धान और ध्यान करने से उसका दुःख (आकुलता) नहीं मिटा, उसको सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं हुई तब फिर उसको बताया गया कि दुःख मिटाने व सच्चे सुख को पाने के लिए तो परमशुद्ध निश्चय नय के विषय त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा (शुद्धात्मा) का ही ज्ञान, श्रद्धान व ध्यान करना होगा। इस प्रकार व्यवहार नय की भी एक सीमा तक उपयोगिता है। लेकिन उस सीमा के बाद वह अनुपयोगी हो जाता है। जैसे प्लेन को आकाश में उड़ने के लिये रन-वे पर दौड़ना जरूरी तो है लेकिन एक (समय) सीमा तक। उसके बाद तो उस प्लेन को आकाश में उड़ने के लिए रन-वे छोड़ना ही होगा। जैसे चाय बनाने के लिये दूध में चायपत्ती डालना जरूरी है लेकिन चाय पीने के लिये चायपत्ती को छान कर अलग करना भी जरूरी है। प्रवेश : कृपया इस पूरे प्रकरण' को किसी उदाहरण के द्वारा समझाईये ? समकित : तुम तो जानते ही हो हर घर में एक चाय-प्रेमी व्यक्ति जरूर होता है। हमेंशा उस चाय-प्रेमी की यही कोशिश रहती है कि घर के एक और व्यक्ति को चाय की लत लग जाये ताकि उसको एक साथी मिल जाये क्योंकि उसको लगता है-एक से भले दो। लेकिन दूसरे व्यक्ति ने न तो कभी चाय पी हो और न ही पीना चाहता हो और यह चाय-प्रेमी उसको चाय पीने की रुचि लगाना चाहता है तो वह उससे कहता है कि इस चाय में दार्जीलिंग के बागानों की चायपत्ती, इलायची, केसर आदि मसाले, दूध, शक्कर आदि डाला हुआ है, इसको पीने से दिल और दिमाग तरो-ताजा हो जाते हैं आदि-आदि। इसप्रकार वह चायप्रेमी चाय में डली हुई अनेक सामग्रियों" और उसकी खूबियाँ बताकर सामने वाले व्यक्ति को चाय पीने की रुचि उत्पन्न कराता है। 1.glory2.interest 3.limit 4.utility 5.useless 6.filter 7.topic 8.example 9.habbit 10.fresh 11.ingredients