Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 140 समकित-प्रवेश, भाग-5 1. यदि निश्चय-व्यवहार शब्द का प्रयोग वस्तु के संदर्भ में किया जाये तो वस्तु में जो शुद्ध और शाश्वत गुणों का समूह शुद्ध और शाश्वत ध्रुव-अंश' है वह वस्तु का निश्चय कहलाता है और जो क्षणिक और शुद्ध/अशुद्ध पर्याय-अंश है वह वस्तु का व्यवहार कहलाता है। शास्त्रीय भाषा में इनको अर्थ-नय भी कहते हैं। 2. यदि हम जीव की एक समय की पर्याय को देखें तो पर्याय में जो शुद्धता का अंश है, वह निश्चय और जो अशुद्धता का अंश है, वह व्यवहार कहलाता है। 3. यदि हम जीव के ज्ञान गुण की एक समय की पर्याय को देखें, तो उस ज्ञान पर्याय का वह अंश जो शाश्वत और शुद्ध ध्रुव-अंश को जानता है वह निश्चय-नय एवं जो अंश क्षणिक और शुद्ध/अशुद्ध पर्याय-अंश को जानता है उसे व्यवहार-नय कहते हैं। प्रवेश : इसका मतलब यह हुआ कि निश्चय नय और व्यवहार नय ज्ञान पर्याय के अंश हैं ? समकित : हाँ, यह सम्यक-श्रुतज्ञान पर्याय के अंश हैं। शास्त्रीय भाषा में इनको ज्ञान-नय कहा जाता है। 4. यदि हम जीव द्रव्य के श्रद्धा-गुण की एक समय की पर्याय को देखें तो जिस पर्याय ने शाश्वत और शुद्ध ध्रुव-अंश में अपनापन किया है उसे निश्चय-दृष्टि कहते हैं और जिस पर्याय ने क्षणिक और शुद्ध/अशुद्ध पर्याय-अंश में अपनापन किया है उसे व्यवहार-दृष्टि कहते हैं। प्रवेश : सुना था कि श्रद्धा एकांतिक होती है ? यानि कि जिस समय ध्रुव-अंश में अपनापन करती है उस समय पर्याय-अंश में नहीं कर सकती? समकित : बिल्कुल सही सना है। श्रद्धा सम्यक-एकांतिक होती है। एक ही समय में निश्चय दृष्टि और व्यवहार दृष्टि, दोनों का एक साथ पाया जाना असंभव है। क्योंकि निश्चय दृष्टि वह सम्यकदृष्टि (सम्यकश्रद्धा) है / 1.eternal-aspect 2.momentary-aspect 3.fraction 4.unilateral