Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 146 समकित-प्रवेश, भाग-5 आत्मा के हैं लेकिन स्वयं आत्मा नहीं। प्रवेश : किसी न किसी अपेक्षा मतलब? समकित : यह सब व्यवहार-नय की अपेक्षा से आत्मा के हैं / यानि कि व्यवहार नय से आत्मा इनका कर्ता', भोक्ता, ज्ञाता, दृष्टा' कहने में आता है और यह व्यवहार नय के विषय हमारे ज्ञान के ज्ञेय, श्रद्धा के श्रद्धेय और ध्यान के ध्येय शुद्ध-आत्मा की सीमा से बाहर हैं क्योंकि इनके ज्ञान, श्रद्धान और ध्यान से आकुलता/दुःख ही उत्पन्न होता है। प्रवेश : कृपया विस्तार से समझाईये / समकित : उसके लिये हम निम्न चार्ट पर नजर डालेंगेः क्र. व्यवहार नय / कर्ता, भोक्ता, ज्ञाता, दृष्टा | 1. उपचरित असद्भूत स्त्री, पुत्र, मकान, दुकान आदि 2. | अनुपचरित असद्भूत | शरीर, द्रव्यकर्म आदि | 3. | उपचरित सद्भूत मोह, राग-द्वेष आदि 4. | अनुपचरित सद्भूत सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र, गुणभेद इस चार्ट में हमने देखा कि - 1. उपचरित असद्भूत व्यवहार नय से स्त्री, पुत्र, मकान, दुकान, रूपया, पैसा आदि आत्मा के हैं यानि कि इस नय से आत्मा स्त्री, पुत्र, मकान आदि का कर्ता, भोक्ता, ज्ञाता, दृष्टा कहने में आता है। प्रवेश : उपचरित असद्भूत व्यवहार नय, यह नाम याद करना तो बहुत कठिन है ? समकित : इन शब्दों का अर्थ समझने पर नाम सहज ही याद हो जायेगा। उपचरित का अर्थ होता है- दूर के और असद्भूत का अर्थ है- आत्मा में इनका सद्भाव नहीं है। यानि कि स्त्री, पुत्र, मकान आदि आत्मा से दूर (अलग क्षेत्र में) रहते हैं, शरीर की तरह यह आत्मा के साथ एक 1.doer 2.consumer 3.knower 4.perceptor 5.boundary 6.existence