Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 141 और व्यवहार दृष्टि वह मिथ्यादृष्टि (मिथ्याश्रद्धा) है। यानि कि श्रद्धा-गुण की जिस पर्याय ने शाश्वत और शुद्ध ध्रुव-अंश (ध्रुव स्वभाव) में अपनापन किया है, वह क्षणिक और शुद्ध/अशुद्ध पर्याय-अंश में अपनापन नहीं कर सकती। लेकिन अलग-अलग समय में निश्चयदृष्टि (सम्यकदृष्टि) और व्यवहारदृष्टि (मिथ्यादृष्टि) होना संभव' है। चार्ट में दोनों संभावनाओं को दर्शाया गया है। प्रवेश : निश्चयदृष्टि और व्यवहारदृष्टि की तरह ही निश्चय-नय सम्यकज्ञान और व्यवहार-नय मिथ्याज्ञान होता है ? समकित : नहीं, निश्चय नय और व्यवहार नय दोनों ही सम्यक-श्रुतज्ञान के अंश हैं। ज्ञान, श्रद्धा की तरह सम्यक एकांतिक नहीं होता बल्कि सम्यक अनेकांतिक होता है क्योंकि सम्यकज्ञान का काम है-सबको जानना। इसलिए सम्यक-श्रुतज्ञान, ध्रुव-अंश व पर्याय-अंश, स्व एवं पर सभी को मुख्य-गौण करके जानता है। इसलिये निश्चय नय और व्यवहार नय दोनों ही सम्यक-श्रुतज्ञान के अंश होने से सम्यकज्ञान रूप ही हैं। लेकिन श्रद्धा का काम है-अपनापन करना इसलिये ध्रुव-अंश में अपनापन करने वाली निश्चय-दृष्टि(श्रद्धा), सम्यकदृष्टि कहलाती है और पर्याय-अंश में अपनापन करने वाली व्यवहार-दृष्टि(श्रद्धा), मिथ्यादृष्टि कहलाती है। 5. अब यदि बात करें जीव के चारित्र गुण की पर्याय की, तो चारित्र गुण की एक समय की पर्याय में जो वीतरागता का अंश है, वह निश्चय-चारित्र कहलाता है और उसके साथ पाया जाने वाले शुभ-राग का अंश वह व्यवहार चारित्र कहलाता है। 6. और अंत में जो जैन आगम के गूढ़ रहस्यों को समझने-समझाने में सबसे ज्यादा उपयोगी हैं, वह हैं-कथन के निश्चय और व्यवहार। ऐसा इसलिये क्योंकि संपूर्ण जिनागम निश्चय-व्यवहार की शैली" में ही लिखा गया है। 1.possible 2.possibilities 3.unilateral 4.multilateral 5.prime-subside 6.fractions 7.fraction 8.useful 9.narration 10.actual-formal 11.genre