Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 136 समकित-प्रवेश, भाग-5 समकित : हाँ विल्कुल और प्रत्येक द्रव्य का कुछ न कुछ क्षेत्र जरूर होता है यानि कि हर द्रव्य में कुछ न कुछ प्रदेश जरूर होते हैं। क्योंकि बिना क्षेत्र (प्रदेश) के तो द्रव्य की मौजूदगी' ही सिद्ध नहीं होगी। वह एक काल्पनिक वस्तु बन जायेगा। द्रव्य के गुण और पर्यायों की तरह प्रदेश भी द्रव्य का एक आयाम होता है। इन्हीं आयामों को हम द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव के नाम से जानते हैं। द्रव्य द्रव्य क्षेत्र / प्रदेश काल | पर्याय भाव / गुण प्रवेश : तो कौनसे द्रव्य में कितने प्रदेश होते हैं ? समकित : जीव द्रव्य लोक-प्रमाण असंख्यात प्रदेशी है यानि कि लोक में जितने प्रदेश हैं उतने ही जीव में हैं। प्रवेश : चींटी का शरीर तो इतना छोटा होता है उसमें असंख्यात प्रदेश वाला जीव (आत्मा) कैसे बन जाता है ? समकित : जीव द्रव्य में एक संकोच-विस्तार नाम की शक्ति पायी जाती है। जिस शक्ति के कारण उसके प्रदेश प्राप्त शरीर के अनुसार संकचित और विकसित हो जाते हैं। यह संकोच और विस्तार जीव की संकोच-विस्तार नाम की शक्ति (गुण) की ही पर्याय है। प्रवेश : और पुद्गल द्रव्य ? समकित : शुद्ध पुद्गल द्रव्य यानि कि एक अविभागी-पुद्गल-परमाणु एक प्रदेशी (एक प्रदेश वाला) होता है लेकिन जब वह दूसरे पुद्गल परमाणु के साथ जुड़कर स्कंध बना लेता है तो बहुप्रदेशी (बहुत प्रदेश वाला) हो जाता है। यह उसकी अशुद्ध-पर्याय है। 1.existence 2.prove 3.imaginary 4.dimension 5.compress 6.decompress 7.indivisible molecule 8.compound 9.impure-state