Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 108 समकित-प्रवेश, भाग-5 लेकिन जिन की तैयारी ही IEEE की होती थी उनका तो PET निकलने पर भी प्रश्न चिन्ह रहता था और यदि कभी निकल भी जाये तो बमुश्किल बॉर्डर-मार्क्स पर ही निकलता था। प्रवेश : ओह ! अब समझ में आया। समकित : ध्यान रखना उपदेश हमेंशा ऊपर चढ़ने के लिए ही दिया जाता है, नीचे गिरने के लिए नहीं। जो बात जहाँ जिस अपेक्षा' से कही गई हो उसे उस अपेक्षा से समझना चाहिए। मोक्षार्थी को तो अनेकान्त और स्यादवाद की ही शरण है। यह कषाय/राग-द्वेष/अशुद्ध भाव चार प्रकार (स्तर) के होते हैं: स्तर-1. अनंतानुबंधी कषाय स्तर-2. अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय स्तर-3. प्रत्याख्यानावरणीय कषाय स्तर-4. संज्वलन कषाय प्रवेश : भाईश्री ! इनका क्या अर्थ है ? समकित : जैसा कि तुम जान ही चुके हो कि स्वयं में लीन नहीं होना ही कषाय/ राग-द्वेष/अशुद्ध भाव है और वह कषाय चार प्रकार (स्तर) की है। समझने के लिये सरल भाषा में कहे तो स्वयं में पहले स्तर की लीनता भी नहीं हो पाना अनंतानुबंधी कषाय है। स्वयं में दूसरे स्तर की लीनता नहीं हो पाना अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय है। स्वयं में तीसरे स्तर की लीनता नहीं हो पाना प्रत्याख्यानावरणीय कषाय है और स्वयं में चौथे स्तर की (पूर्ण) लीनता नहीं हो पाना संज्वलन कषाय है। प्रवेश : क्या बस यही इनके अर्थ हैं ? समकित : इनके कुछ व्यवहारिक अर्थ भी हैं लेकिन यहाँ अगृहीत (निश्चय) मिथ्याचारित्र का प्रकरण होने से मात्र इनके निश्चय-स्वरूप की ही चर्चा की गई है। प्रकरण आने पर इनके व्यवहार-स्वरूप की भी चर्चा करेंगे। 1.intention/perspective 2.level 3.formal 4.topic 5.actual-aspect 6.formal-aspect