Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ निमित्त कारण समकित : जैसा कि हमने पिछले पाठ में देखा कि जो स्वयं कार्यरूप परिणमित नहीं होता लेकिन कार्य की उत्पत्ति में अनुकूल होने का आरोप जिसपर आता है उसे निमित्त कारण कहते हैं। यह निमित्त कारण भी मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं : 1. अंतरंग निमित्त कारण 2. बहिरंग निमित्त कारण 3. प्रेरक निमित्त कारण 4. उदासीन निमित्त कारण कार्य-घड़ा कारण निमित्त उपादान त्रिकाली अनंतर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय (मिट्टी का पिंड) तत्समय की योग्यता (घड़ा) (मिट्टी) अंतरंग (कुम्हार) उदासीन (धर्म द्रव्य) बहिरंग (चक्र, दण्ड आदि) प्रेरक (कुम्हार, चक्र आदि) प्रवेश : कृपया एक-एक कर के समझाईये / समकित : 1. अंतरंग निमित्त कारण- तत्समय की पर्यायगत योग्यता रूप उपादान कारण के मौजूद होने पर जो निमित्त नियमरूप-से मौजूद रहता है उसे अंतरंग निमित्त कहते हैं। जैसे समझने के लिए हम कह सकते हैं कि घड़ा बनने की तत्समय की पर्यायगत योग्यता रूप क्षणिक उपादान कारण मौजूद होने पर कुम्हार (घड़ा बनाने के योग और उपयोग वाला व्यक्ति) वहाँ नियम-रूपसे मौजूद रहता है। क्योंकि इसप्रकार का ही निमित्त-नैमित्तक संबंध है। 1.present 2.compulsorily