Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ धर्म-अधर्म-आकाश-काल समकित : जीव और पुद्गल द्रव्य की चर्चा तो हम बहुत विस्तार से कर चुके हैं। अब हम बाकी चार द्रव्य यानि कि धर्म, अधर्म, आकाश व काल द्रव्य की चर्चा करने के लिये भी परिपक्व हो चुके हैं। इसलिये अब हम उनकी चर्चा करेंगे। प्रवेश : परिपक्व हो गये हैं मतलब ? समकित : इन चार द्रव्यों का स्वरूप निमित्त-कारण का स्वरूप समझे बिना नहीं समझा जा सकता। प्रवेश : ऐसा क्यों ? समकित : क्योंकि जो स्वयं चलते हुये जीव और पुद्गल को चलने में निमित्त हो उसे धर्म द्रव्य कहते हैं। निमित्त कारण की सही समझ होने के बाद ही हम इस परिभाषा का भावार्थ सही तरह से समझ सकते हैं कि जब जीव और पुद्गल स्वयं अपनी (क्रियावती शक्ति की) तत्समय की योग्यता से चलते हैं तो उनके चलने (गमन) में अनुकूल होने का आरोप जिस द्रव्य पर आता है उसे धर्म द्रव्य कहते हैं क्योंकि धर्म द्रव्य का स्वरूप ही कुछ ऐसा है। उसीतरह जब चलते हुये जीव व पुद्गल स्वयं अपनी (क्रियावती शक्ति की) तत्समय की योग्यता से रुक जाते हैं तब उनके रुकने में अनुकूल होने का आरोप जिस द्रव्य पर आता है उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं। | गुण पर्याय जीव / /जीव ज्ञान, दर्शन, श्रद्धा, चारित्र स्पर्श, रस, गंध, वर्ण गति-निमित्तता स्थिति-निमित्तता अवगाहन-निमित्तता परिणमन-निमित्तता द्रव्य पुद्गल धर्म अधर्म अजीव आकाश काल लोक अलोक 1.remaining2.prepare 3.self 4.motion 5.blame 6.stoppage