Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 115 समकित : हाँ बिल्कुल ! क्योंकि सम्यकदर्शन (आत्म-श्रद्धान) और सम्यकज्ञान (आत्म-ज्ञान) तो सबका एक सा ही है, अंतर तो मात्र सम्यकचारित्र (आत्म-लीनता) में ही है इसलिये। पहले स्तर की आत्म-लीनता वालों का मोक्षमार्ग में चौथा गुणस्थान होता है, ऐसे जीवों को अविरत् सम्यकदृष्टि कहते हैं। दूसरे स्तर की आत्म-लीनता वालों का मोक्षमार्ग में पाँचवा गुणस्थान होता है उनको देश-व्रती श्रावक कहते हैं। तीसरे स्तर की आत्म-लीनता वालों के मोक्षमार्ग में छठवें से दसवें तक के गुणस्थान होते हैं उनको हम मुनिराज (सामान्य) कहते हैं। चौथे स्तर की (पूर्ण) आत्म-लीनता वालों के बारहवें से चौदहवें तक के गुणस्थान और गुणस्थानातीत (गुणस्थानों से पार) दशा होती है। बारहवें गुणस्थान वाले जीव को पूर्ण वीतरागी क्षीण-कषाय मुनि, तेरहवें-चौदहवें गुणस्थान वाले जीव को अरिहंत भगवान और गुणस्थानातीत दशा वाले जीव को सिद्ध भगवान कहते हैं। प्रवेश : और मिथ्यादृष्टि का कौनसा गुणस्थान होता है ? समकित : मिथ्यादृष्टि का पहला गुणस्थान होता है। प्रवेश : अब व्यवहार सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र के बारे में भी बता दीजिये। समकित : आज नहीं कल। द्रव्य | पर्याय अशुद्ध पर्याय शुद्ध पर्याय ज्ञान | मिथ्याज्ञान अनात्मज्ञान अज्ञान कुज्ञान सम्यकज्ञान | आत्मज्ञान ज्ञान | सुज्ञान श्रद्धा मिथ्याश्रद्धा// मोह मिथ्यात्व उल्टी मान्यता सम्यकश्रद्धा/| निर्मोह | सम्यक्त्व सीधी मान्यता मिथ्यादर्शन सम्यकदर्शन चारित्र मिथ्याचारित्र | राग-द्वेष कषाय |अशुद्ध भाव सम्यकचारित्र वीतरागता निःकषाय शुद्ध भाव लीनता |पद जीव अनंतानुबंधी सम्यक्त्वाचरण स्तर-1 अ. सम्यकदृष्टि मान अप्रत्याख्यान. देश चारित्र स्तर-2 व्रती श्रावक प्रत्याख्यान. सकल चारित्र स्तर-3 मुनिराज संज्वलन. | यथाख्यात चारित्र स्तर-4 भगवान ___पूर्ण ज्ञान सच्चा सुख विशेष-यह चार्ट प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है अतः कुछ बातें गौण की गयी हैं।।