Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 124 समकित-प्रवेश, भाग-5 निमित्त कारण (अनुकूल होने) का आरोप भी नहीं आ सकता क्योंकि इन सामग्रियों पर निमित्त कारण होने का आरोप तो कार्य होने पर ही आता है। जैसे तीर्थंकर के समवसरण में जिन जीवों को अपने उपादान कारण से क्षायिक-सम्यकदर्शन रूपी कार्य प्रगट हो जाता है, उनके लिये तो तीर्थंकर पर निमित्त कारण होने का आरोप आ जाता है। लेकिन जिन जीवों को क्षायिक-सम्यकदर्शन रूपी कार्य प्रगट न हो उनके लिये तो तीर्थकर पर निमित्त कारण होने का आरोप भी नहीं आता। में अनार प्रवेश : जब निमित्त कारण, कार्य में अनुकूल नहीं होता तो फिर उस पर कार्य में अनुकूल होने का आरोप कैसे आ जाता है ? समकित : क्योंकि निमित्त कारण भी वही कहलाता है कि जिसका स्वरूप' कुछ ऐसा हो कि उसके ऊपर कार्य में अनुकूल हेने का आरोप आ सके। जिन पदार्थों का स्वरूप ऐसा नहीं हो कि उन पर कार्य में अनुकूल होने का आरोप भी आ सके, वे कार्य के निमित्त कारण भी नहीं कहलाते। जैसे कि घड़े की उत्पत्ति रूपी कार्य में कुम्हार, चक्र आदि तो निमित्त-कारण नाम पा जाते हैं क्योंकि उनके योग व उपयोग आदि कुछ इसप्रकार के हैं कि उनपर घड़े की उत्पत्ति में अनुकूल होने का आरोप आ सके लेकिन पास में खड़ी कुम्हार की बकरी निमित्त-कारण नाम नहीं पाती क्योंकि उसके योग और उपयोग ऐसे नहीं है कि उस पर घड़े की उत्पत्ति में अनुकूल होने का आरोप भी आ सके। प्रवेश : यह तो समझ में आ गया कि कार्य उपादान कारण से ही होता है और जब उपादान कारण हो तभी योग्य निमित्त-कारण मिलते हैं, लेकिन कार्य होता तो तभी है न, जब योग्य निमित्त मिलते हैं ? क्योकि घड़े का उपादान कारण मिट्टी तो हमेशा मौजूद है लेकिन घड़ा बनता तो तभी है जब योग्य निमित्त कुम्हार, चक्र दण्ड आदि मिलते हैं ? समकित : नहीं ऐसा नहीं है। यह भ्रम उपादान कारण के भेद-प्रभेद की परी जानकारी न होने के कारण पैदा होता है। 1.nature and execution 2.0ccurance 3.types-subtypes