Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 119 समकित-प्रवेश, भाग-5 प्रवेश : तीन मूढ़ता और छः अनायतन तो हम पहले भी समझ चुके हैं। यह आठ मद और आठ दोष कौनसे हैं ? समकित : आठ मद- अनंतानुबंधी मान' को मद कहते हैं। मद एक प्रकार से मान का मुरब्बा है। ज्ञान मद | ज्ञान का मद पूजा मद | प्रतिष्ठा का मद कुल मद / पिता के वंश के बड़प्पन' का मद जाति मद | माता के वंश के बड़प्पन का मद बल मद | शारिरिक-बल का मद ऋद्धि मद धन, वैभव, ऋद्धि आदि का मद। तप मद | तपस्या का मद | 8. | रूप मद | शरीर की सुन्दरता का मद 1. आठ दोषः शंका जिनेन्द्र भगवान के वचनों में शंका करना कांक्षा धर्म के फल में सांसरिक-सुखों की कामना करना विचिकित्सा धर्मात्माओं के शरीर के मल" को देख घृणा" करना / मूढ़दृष्टि सच्चे और झूठे तत्वों की पहिचान न रखना अनुपगूहन अपने गुणों" दूसरों के अवगुणों को उजागर करना अस्थितिकरण धर्म से डिगते हये जीव को धर्म में दृढ़ न करना अवात्सल्य साधर्मी पर निस्वार्थ-प्रीति” न रखना अप्रभावना जिन धर्म को कलंकित करना, जिन-धर्म की शोभा” में वृद्धि न करना सम्यकदृष्टि को इन आठ दोषों का न होना ही सम्यकदर्शन के आठ अंग हैं जो कि निम्न हैं: 1.pride 2.jam 3.prestige 4.superiority 5.physical-strength 6.wealth 7.asceticsm 8.doubt 9.worldly-pleasures 10.wish 11.dirt 12.disguist feeling 13.philosophy 14. qualities 15.faults 16.firm 17.selfless-affection 18.disgrace 19.grace