Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 117 समकित : नहीं, तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान अरिहंत भगवान के हैं और वह भाव-मोक्ष स्वरूप हैं। इस अपेक्षा से वे मोक्षमार्ग में नहीं आते। प्रवेश् : जैसा आपने पहले बताया था कि निश्चय सम्यकदर्शन व सम्यकज्ञान तो चौथे गुणस्थान में ही पूर्ण हो जाते है लेकिन निश्चय सम्यकचारित्र अलग-अलग गुणस्थान में (वृद्धि स्तर की अपेक्षा से) अलग-अलग प्रकार का होता है। तो क्या अलग-अलग गुणस्थान में व्यवहार सम्यकचारित्र भी अलग-अलग प्रकार का होता है ? समकित : हाँ, जैसे अविरत्-सम्यकदृष्टि को पहले स्तर की आत्मलीनता रूप निश्चय सम्यक्त्वाचरण चारित्र, व्रती-श्रावक को दूसरे स्तर की आत्मलीनता रूप निश्चय देश चारित्र, सामान्य मुनिराज को तीसरे स्तर की आत्मलीनता रूप निश्चय सकल चारित्र और पूर्ण वीतरागी क्षीण-कषाय मुनि को चौथे स्तर की (पूर्ण) आत्मलीनता रूप यथाख्यात चारित्र होता है। वैसे ही अविरत्-सम्यकदृष्टि को जघन्य शुभ-राग रूप व्यवहार सम्यक्त्वाचरण चारित्र, व्रती-श्रावक को मध्यम शुभ-राग रूप व्यवहार देश चारित्र और मुनिराज को उत्कृष्ट शुभ-राग रूप व्यवहार सकल चारित्र होता है। प्रवेश : फिर तो पूर्ण वीतरागी क्षीण कषाय मुनि को व्यवहार यथाख्यात चारित्र भी होता होगा? समकित : नहीं, क्षीण कषाय मुनि पूर्ण वीतरागी हैं उनका संपूर्ण' राग (शुभ-अशुभ) नष्ट हो चुका है और व्यवहार चारित्र तो शुभ-राग रूप होता है। इसलिये उनके मात्र (निश्चय) यथाख्यात चारित्र होता है, व्यवहार यथाख्यात चारित्र नहीं। प्रवेश : निश्चय चारित्र के भेदों का आधार तो बढ़ती हुई आत्मलीनता (वीतरागता) है। व्यवहार चारित्र के भेदों का आधार क्या है ? समकित : व्यवहार चारित्र के भेदों का आधार बढ़ती हुई वीतरागता के साथ बढ़ता हुआ शुभ भाव यानि कि बाकी रह गये राग/कषाय की बढ़ती हुई मंदता है। 1.entire 2.classifications 3.base