Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 113 समकित-प्रवेश, भाग-5 इस चार्ट में बहुत ही स्पष्ट है कि शास्त्रों में: निश्चय सम्यकज्ञान को आत्मज्ञान, ज्ञान और सुज्ञान शब्दों से भी पुकारा जाता है। निश्चय सम्यकदर्शन को निर्मोहता, सम्यक्त्व और सीधी-मान्यता भी कहा जाता है। निश्चय सम्यकचारित्र को वीतरागता, निःकषाय भाव और शुद्ध-भाव भी कहा जाता है। प्रवेश : जिसप्रकार हमने निश्चय मिथ्याचारित्र/राग-द्वेष/कषाय/अशुद्ध भाव के चार प्रकार (स्तर)- अनंतानुबंधी कषाय, अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय, प्रत्याख्यानावरणीय कषाय व संज्वलन कषाय देखे थे क्या वैसे ही निश्चय सम्यकचारित्र के भी चार प्रकार (स्तर) होते हैं ? समकित : हाँ,मिथ्याचारित्र के चार भेद-अनंतानुबंधी कषाय, अप्रत्याख्यानावरणी कषाय, प्रत्याख्यानावरणीय कषाय व संज्वलन कषाय के अभाव रूप निश्चय सम्यकचारित्र/वीतरागता/निःकषाय-भाव/शुद्ध-भाव के भी चार प्रकार (स्तर) होते हैं: स्तर-1. निश्चय सम्यक्त्वाचरण चारित्र (अनंतानुबंधी कषाय के अभाव रूप) स्तर-2. निश्चय देश चारित्र (अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय के अभाव रूप) स्तर-3.निश्चय सकल चारित्र (प्रत्याख्यानावरणीय कषाय के अभाव रूप) स्तर-4. निश्चय यथाख्यात चारित्र (संज्वलन कषाय के अभाव रूप) प्रवेश : मतलब? समकित : जैसे कि हमने पहले भी देखा था कि हम समझने के लिये कह सकते हैं कि अनंतानुबंधी कषाय का निश्चय (यथार्थ) अर्थ होता है स्वयं में पहले स्तर की लीनता भी नहीं होना आदि-आदि। ठीक उसके उलट हम समझने के लिये कह सकते हैं किः निश्चय सम्यक्त्वाचरण चारित्र का अर्थ है स्वयं में पहले स्तर की लीनता होना यानि कि अनंतानुबंधी कषाय का अभाव होना।