Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
View full book text
________________ गृहीत (व्यवहार) मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र पिछले पाठ में हमने अगृहीत (निश्चय) मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र के स्वरूप की चर्चा की। इस अगृहीत मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र को पुष्ट' करने वाले गृहीत (व्यवहार) मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र हैं। इसलिये गृहीत मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र के छूटे बिना अगृहीत मिथ्यादर्शनज्ञान-चारित्र का छूटना असंभव है। अतः हमें सबसे पहले बुद्धि पूर्वक इनका त्याग करना चाहिये। प्रवेश : गृहीत मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र का स्वरूप विस्तार से समझाईये। समकित : कुदेव-कुशास्त्र-कुगुरु की श्रद्धा गृहीत-मिथ्यादर्शन है। प्रवेश : कुदेव-कुशास्त्र-कुगुरु किसे कहते हैं ? समकित : जो वीतरागी और सर्वज्ञ न होकर मोही, रागी-द्वेषी व अल्पज्ञ देवी देवता हैं उन्हें कुदेव कहते हैं। मोही, रागी-द्वेषी व अल्पज्ञ की कल्पित वाणी को कुशास्त्र कहते हैं। मोही, रागी-द्वेषी व अल्पज्ञों की वाणी का अनुशरण कर कुलिंग (विपरीत भेष व तप) धारण करने वाले व राग में धर्म मानने /मनवाने वाले गुरुओं को कुगुरु कहते हैं। प्रवेश : क्या तीन मूढ़ता और छः अनायतन गृहीत मिथ्यादर्शन नहीं हैं ? समकित : यह भी गृहीत मिथ्यादर्शन के ही भेद हैं जो कि एक प्रकार से __ कुदेव-कुशास्त्र-कुगुरू के श्रद्धान में गर्भित हो जाते हैं। प्रवेश : कैसे? समकित : मूढ़ता तीन प्रकार की है: 1. देव मूढ़ता 2. गुरु मूढ़ता 3. लोक मूढ़ता जो सच्चे देव नहीं है ऐसे कुदेवों और अदेवों को पूजना देव मूढ़ता है। 1.strong 2.faith 3.adopt 4.include