Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
View full book text
________________ 110 समकित-प्रवेश, भाग-5 प्रवेश : देव तो ठीक, ये अदेव क्या होते हैं ? समकित : पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, नदी-तालाब, तुला-तिजोरी, वही-खाते आदि जो कि वीतरागी और सर्वज्ञ तो क्या, देवगति के जीव तक नहीं है उनको अदेव कहते हैं। इन अदेवों को पूजना भी कुदेवों को पूजने समान देव मूढ़ता है। प्रवेश : गुरु मूढ़ता और लोक मूढ़ता ? समकित : जो वीतराग मार्ग पर चलने वाले गुरु (आचार्य-उपाध्याय-साधु) नहीं हैं, उनको पूजना गुरु मूढ़ता है। लोक में चलने वाले अंधविश्वास', कुप्रथाओं आदि में विश्वास रखना लोक मूढ़ता है। प्रवेश : और ये छः अनायतन क्या हैं ? समकित : कुदेव-कुधर्म-कुगुरु व कुदेव-कुधर्म-कुगुरु को मानने वालों की प्रशंसा अनुमोदना करना छः अनायतन है। अब तुम को समझ में आ गया होगा कि तीन मूढ़ता और छः अनायतन, कुदेव-कुशास्त्र-कुगुरु के श्रद्धान में ही गर्भित हो जाते हैं। लेकिन तुमने पूँछा, ये अच्छा किया क्योंकि सामान्य-ज्ञान' से विशेष-ज्ञान बलवान है। प्रवेश : गृहीत मिथ्यादर्शन का स्वरूप तो समझ में आ गया, गृहीत मिथ्याज्ञान किसे कहते हैं ? समकित : मोही, रागी-द्वेषी व अज्ञानी जीवों द्वारा बनाये गये कल्पित ग्रंथ, जिनमें मिथ्यात्व व कषायों (मोह, राग-द्वेष) का ही पोषण किया गया हो, उनको ही धर्म बताया गया हो व जो जीव को अनन्त संसार में भटकाने में निमित्त हों ऐसे कुशास्त्रों का स्वाध्याय करना गृहीत मिथ्याज्ञान कहलाता है। 1.superstitions 2.malpractices 3.praise 4.brief-knowledge 5.vast-knowledge 6.false-belief 7.confirmation 8.study