Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
View full book text
________________ कर्म समकित : आज का विषय है कर्म। कर्म दो प्रकार के होते हैं: 1. भाव कर्म 2. द्रव्य कर्म प्रवेश : अच्छा कर्म भी व्यसन की तरह दो प्रकार के होते हैं ? समकित : हाँ, जीव के यानि कि हमारे मोह (मिथ्यात्व) और राग-द्वेष (कषाय) ___ परिणाम (पर्याय), भाव कर्म हैं और उनके निमित्त से बँधने-वाले पुद्गल के परिणाम (पर्याय) द्रव्य कर्म हैं। प्रवेश : इसका मतलब यह हुआ कि भाव कर्म-जीव की पर्याय हैं और द्रव्य-कर्म पुद्गल की? समकित : हाँ, एक जीव का कार्य (पर्याय) है और दूसरा पुद्गल का। इनमें आपस-में निमित्त-नैमित्तिक संबंध है। प्रवेश : यह निमित्त-नैमित्तिक संबंध क्या होता है ? समकित : वह मैं तुम्हें बाद में कभी समझाऊँगा। अभी तो सिर्फ इतना समझ लो कि इन दोनों में से एक होता है तो दूसरा होता ही है। यानि की जीव जब-जब मोह, राग-द्वेष आदि भाव कर्म करेगा, तब-तब द्रव्य कर्म बँधेगे ही। प्रवेश : हाँ और जब-जब द्रव्य कर्म का उदय' आयेगा, तब-तब जीव दुःखी होगा? समकित : हाँ, लेकिन द्रव्य कर्म के कारण नहीं बल्कि अपने खुद के मोह, राग-द्वेष आदि भाव कर्मों के कारण। प्रवेश : मतलब? 1.bonding 2.mutually 3.relation 4.arise