Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ अगृहीत (निश्चय) मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र जैसा कि हमने पिछले पाठ में देखा था कि स्वयं को न जानना वह अगृहीत मिथ्याज्ञान है। स्वयं में अपनापन न करना वह अगृहीत मिथ्यादर्शन है व स्वयं में लीन न होना वह अगृहीत मिथ्याचारित्र है, जो तीनों मिलकर दुःख/संसार का मूल कारण हैं। जैन शास्त्रों में दुःख/संसार के कारणों को गिनाते हुये इन तीनों की ही चर्चा अलग-अलग पर्यायवाची शब्दों से की जाती है। इन तीनों के पर्यायवाची शब्द और उनके भावार्थ से अनजान होने के कारण यह आसान सी चर्चा भी लोगों को कठिन लगने लगती है एवं वे स्वाध्याय से दूर भागने लगते हैं। स्वाध्याय के बिना सम्यकज्ञान की प्राप्ति और सम्यकज्ञान के बिना सम्यकचारित्र की प्राप्ति और सम्यकचारित्र के बिना मोक्ष की प्राप्ति व मोक्ष के बना सच्चे सुख की प्राप्ति असम्भव है। कहा भी हैजो बिन ज्ञान क्रिया अवगाहे, जो बिन क्रिया मोक्ष सुख चाहे। जो बिन मोक्ष कहे मैं सुखिया, सो अजान मूढ़न को मुखिया।। कहने का मतलब यह है कि यदि सच्चे सुख को प्राप्त करना है तो स्वाध्याय करना ही होगा और इन मूल-शब्दों के पर्यायवाची शब्दों की जानकारी न होने के कारण, हमको स्वाध्याय अरुचिकर न लगे, इसलिये हम इन शब्दों के पर्यायवाची निम्न चार्ट के माध्यम से समझेंगेः 1.synonyms 2.abstract 3.impossible 4.basic-terms 5.synonyms 6.unpleasant