Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ विशेष गुण पिछले पाठों में हमने देखा कि किस प्रकार सभी द्रव्यों में समान रूप से पाये जाने वाले सामान्य गुणों के द्वारा जैन दर्शन के मूल-सिद्धान्तों' की सिद्धि होती है और इनके स्वरूप के निर्णय से हम किस प्रकार अपनी चिन्ता' और आकुलताओं से मुक्त हो सकते हैं। अब हम द्रव्य के उन विशेष-गुणों की चर्चा करेंगे जो सभी द्रव्यों में न पाये जाकर अपने-अपने द्रव्यों में पाये जाते हैं यानि कि जो सभी द्रव्यों अधर्म, आकाश, काल) में बाँट देते हैं। प्रवेश : भाईश्री ! छहों द्रव्यों के विशेष गुणों के बारे में बताईये ना समकित : अभी तो हम छह द्रव्यों में से मात्र जीव और पुद्गल के ही विशेष गुणों की चर्चा करेंगे क्योंकि जीव द्रव्य तो हम स्वयं ही है व उसी का असली परिचय" हमको करना है और पुद्गल द्रव्य से तो हम काफी कुछ परिचित हैं ही। इसलिए हम सबसे पहले पुद्गल के विशेष गुणों की चर्चा करेंगे। यह पुस्तक, टेबल, चेयर व हमारा शरीर सब अनंत पुद्गल परमाणुओं का समूह है। वास्तव में" तो एक अविभागी-पुद्गलपरमाणु" ही पुद्गल द्रव्य है। शरीर आदि पुद्गल परमाणुओं (द्रव्यों) का समूह होने से ही पुद्गल कहलाते हैं। प्रवेश : जैसा कि आपने बताया कि गुणों का समूह ही द्रव्य है, तो पुद्गल द्रव्य किन-किन गुणों का समूह है यानि कि पुद्गल द्रव्य में कौन-कौन से गुण पाये जाते हैं ? 1.basic-principles 2.confirmation 3.understanding 4.worries 5.uneasiness 6.free 7.special-attributes 8.differenciate 9.races 10.self 11.awareness 12.aware 13.molecules 14.actually 15.undivisible-molecules