Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ जीव द्रव्य समकित : पिछले पाठ में हमने पुद्गल द्रव्य के गुण-पर्यायों को शब्दों से समझा। शब्दों से समझा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि भाव-रूपसे' तो हम इनसे पहले से ही परिचित हैं भले ही यह शब्द हमने पहली बार सुने हों क्योंकि रुपया-पैसा, मकान-दुकान, सोना-चाँदी यहाँ तक कि हमारा शरीर पुद्गल द्रव्य की ही तो पर्याय है। बस यदि हम किसी चीज से अनादि काल से अपरिचित हैं- वह है हम स्वयं यानि की जीव / बस अब हमारी चर्चा का विषय भी यही है। कहने का मतलब यह है कि अब जो चर्चा शुरु होने जा रही है वह हमारी अपनी है, हम सबकी है। हम यानि कि जीव भी अन्य द्रव्यों की तरह अनंत सामान्य और विशेष गुणों का समूह है। जिस तरह पुद्गल द्रव्य के चार मुख्य विशेष-गुण स्पर्श, रस, गंध वर्ण हैं उसी तरह जीव द्रव्य के अनंत विशेष-गुणों में से चार मुख्य विशेष गुण निम्न हैं: 1. ज्ञान ability to know 2. श्रद्धा ability to believe 3. चारित्र ability to conduct/to be immersed 4. सुख ability to experience bliss प्रवेश : इन गुणों के बारे में विस्तार से बताईये न। समकित : पदार्थों (चीजों) को जान सकने की शक्ति का नाम है ज्ञान गुण, उनमें सकने की शक्ति का नाम है चारित्र गुण और सुखी हो सकने की शक्ति का नाम है सुख गुण है। प्रवेश : ऐसी शक्तियाँ /गुण द्रव्य में कहाँ पाये जाते हैं ? 1.abstractively 2.aware 3.unaware 4.self 5.soul